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________________ बामपन्द्रिकाटीका-शानभेदाः । (स्त्रीमोक्षसमर्थनम् ) परोपदेशमपेक्ष्य साध्यज्ञानं, तत् परार्थानुमानम् । यथा-पर्वतो वढिमान , (प्रतिज्ञा १), धूमात् , ( हेतुः२), यथा महानसम् ( दृष्टान्तः ३), तथा चायम् , (उपनयः ४ ), तस्मात् तथा (निगमनम् ५), इत्यादि पञ्चावयववाक्यं यत्र प्रयज्यते, तत् परार्थानुमानम् । है कि इस पर्वत में अग्नि है । यदि अग्नि नहीं होती तो यह अविच्छिन्न शाखावाला धूम जो दिख रहा है वह नहीं दिखता। स्वार्थानुमान यद्यपि ज्ञानरूप होता है परन्तु समझाने के लिये ही वहां वह " पर्वतोऽयं वह्निमान् धूमवत्त्वात्" इस रूप से शब्दों द्वारा उल्लिखित किया गया है, जैसे प्रत्यक्ष का“अयं घट: " इस शब्द द्वारा उल्लेख किया जाता है। जिस अनुमान में पर के उपदेश की अपेक्षा करके साधन से साध्य का ज्ञान होता है वह परार्थानुमान है। जैसे किसी से ऐसा जब कहा जाता है कि देखो भाई ! इस पर्वत में अग्नि है, क्यों कि धूम उठ रहा है, जैसे-रसोईघर में धूम उठता रहता है तो वहां अग्नि रहती है, उसी प्रकार पर्वत में भी ऐसा ही हो रहा है, इसलिये यहां भी अग्नि है । यह पञ्चावयव वाक्य है, क्यों कि पर्वत में अग्नि का सद्भाव ख्यापित किया जा रहा है अतः वह पक्ष है, अग्नि साध्य है, पक्ष और हेतु का समुदायरूप कथन प्रतिज्ञा कहलाती है । इसलिये 'पर्वत अग्निवाला है। ऐसा कथन प्रतिज्ञा हुई १ । 'धूमवत्त्वात् यह पंचम्यन्त साधन हुआ २ । महानस दृष्टान्त ३ । पक्षमें हेतु का उपसंहार પર્વતમાં અગ્નિ છે. જે અગ્નિ ન હોત તે આ અવિચ્છિન્ન શાખાવાળે જે ધુમાડો દેખાય છે તે દેખાતો નહીં. આ સ્વાર્થનુમાન જે જ્ઞાનરૂપ હોય છે ५ समलवाने माटे मी तन। “पर्वतोऽय बतिमान् धूमवत्त्वात् " म। शत ५४ द्वारा Geeोप राय.. छ रवी शत प्रत्यक्षन। “अयं घटः॥ २॥ શબ્દ દ્વારા ઉલ્લેખ કરવામાં આવે છે. જે અનુમાનમાં પરોપદેશની અપેક્ષા કરીને સાધનથી સાધ્યનું જ્ઞાન થાય છે તે પરાર્થોનુમાન છે. જેમકે જ્યારે કોઈ એવું કહે કે જુઓ ભાઈ! આ પર્વતમાં અગ્નિ છે, કારણ કે ધુમાડો નીકળી રહ્યો છે, જેમ-રસોડામાંથી ધુમાડે નીકળતું હોય તે ત્યાં અગ્નિ રહેલ હોય છે, એજ પ્રમાણે પર્વતમાં પણ એવું થઈ રહ્યું છે તેથી ત્યાં પણ અગ્નિ છે. આ પચાવચવ વાક્ય છે, કારણ કે પર્વતમાં અગ્નિના ભાવ સ્થાપિત કરાઈ રહ્યો છે તેથી તે પક્ષ છે ૧. અગ્નિ સાધ્ય છે ૨. પક્ષ અને હેતુના સમુદાયરૂપ ४थनने प्रतिज्ञा उपाय छ १. धूमवत्वात् ये पयस्यन्त साधन थयु २. न० ४०
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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