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________________ भानचन्द्रिकाटीका-शानमेदाः । १५९ टीका-जम्बूस्वामी सुधर्मस्वामिनं पृच्छति-' से किं तं मणपज्जवनाणं ' इति। पूर्वनिर्दिष्टं यन्मनःपर्यवज्ञानं तस्य किं स्वरूपमिति। एवं जम्बूस्वामिना पृष्टः सुधर्मा स्वामी मनःपर्यवज्ञानविषये भगवद्गीतमयोः संवादप्रदर्शनपूर्वकमुत्तरमाह'मणपज्जवनाणे' इत्यादि। गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! मनःपर्यवज्ञानं किं. मनुष्याणामुत्पद्यते, उत अमनुष्याणाम् ? भगवानाह-हे गौतम ! मनुष्याणां मनःपर्यवज्ञानमुत्पद्यते, न तु अमनुष्याणां, मनुष्यजातिभिन्नानां देवनारकतिरश्चां मनः पर्यवज्ञानं नोत्पद्यते इत्यर्थः, तेषां विशिष्टचारित्रप्रतिपत्यभावादिति भावः । भगवता श्रीवर्धमानस्वामिना गौतमं प्रति यथा मनःपर्यवज्ञानं वर्णितं तथा वर्णितेन जम्बू -शिष्यः सम्यग् विज्ञास्यतीत्याशयेन सुधर्मा स्वामी भगवद्गौतमयोः संवादं प्राह___ अब सूत्रकार मनःपर्यवज्ञान का वर्णन करते हैं-से किं तं मणपज्जवनाणं इत्यादि। जंबूस्वामी श्री सुधर्मा स्वामी से पूछते हैं-हे भदन्त ! पूर्वनिर्दिष्ट मनःपर्यवान का क्या स्वरूप है। उत्तरमें सुधर्मा स्वामी, भगवान् महावीर और गौतमस्वामी का मनःपर्यवज्ञान के विषय में जो संवाद हुआ उसको कहते हैं-गौतमस्वामी पूछते हैं-'मणपज्जवनाणे णं' इत्यादि' हे भदन्त ! मनःपर्यवज्ञान मनुष्यों को उत्पन्न होता है कि अमनुष्यों को ? प्रत्युत्तर में भगवान ने कहा-हे गौतम ! मनःपर्यवज्ञान मनुष्यों को उत्पन्न होता है, अमनुष्यों को नहीं। मनुष्यजाति से भिन्न देव नारकी एवं तिर्यञ्च गति के जीवों को मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न नहीं होता है, क्यों कि मनःपर्यवज्ञान की उत्पत्ति का कारण विशिष्ट चारित्र की पालना है। विशिष्ट चारित्र की पालना इन गति के जीवों के नहीं होती है । इस प्रकार का जो इस सूत्र में भगवान् श्री वर्धमानस्वामी और गौतम का संवाद मनापर्यवज्ञान के विषय में श्री सुधर्मास्वामीने જંબૂ સ્વામી શ્રી સુધર્મા સ્વામીને પૂછે છે-હે ભદન્ત! પૂર્વ નિર્દિષ્ટ મન . પર્યવજ્ઞાનનું શું સ્વરૂપ છે ? ઉત્તરમાં સુધર્માસ્વામી, ભગવાન મહાવીર, અને ગૌતમસ્વામીને મન પર્યવજ્ઞાનના વિષયમાં જે સંવાદ થયે તે કહે છે. ગૌતમ स्वामी पूछे छे. “ मणपज्जवनाणेण त्याह. 3 rd! मन पर्यवज्ञान मनु. ને ઉત્પન્ન થાય છે કે અમનુષ્યને? જવાબમાં ભગવાને કહ્યું-“હે ગૌતમ ! મન:પર્યવજ્ઞાન મનુષ્યોને ઉત્પન્ન થાય છે અમનુષ્યને નહીં. મનુષ્ય જાતિથી ભિન્ન દેવ, નારકી અને તિર્યંચ ગતિના ને મન પર્યાવજ્ઞાન ઉત્પન્ન થતું નથી, કારણ કે મન પર્યવ જ્ઞાનની
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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