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________________ রেও सुदर्शिनी टीका४ भ० ५ सू०१ परिग्रहचिमणनिरूपणम् अमणो भवति । एतदेव वर्यते-'आरभ परिग्गहाओ' भारम्भपरिवहाद-आरम्भः पृथिन्याधुपमर्दः, परिग्रहः पायाभ्यन्तरभेदाद् द्विवियः, तन-गाह्य परिग्रहः धर्मापकरणातिरिक्तभिन्नरस्तुग्रहण, धर्मोपकरणेपु मृर्ग च । आन्तर' परिग्रह स्तु-मिथ्यादिरतिरूपायप्रमादाशुभयोगस्प', जनयोः समातारद्वन्ध , तम्माद् 'पिरए' पिरतो यः म अमणो भवति । तया : 'मोहमाणमायालोमा' क्रोधमानमायाकोभात् , अन-समारत्वादेश्त्वम् 'रिए' पिरतः स अनणो भवति । अयादि सरयया मिथ्यात्वादि लक्षणाऽऽभ्यन्तरपरिगविगति विशढयन्नाह'एगे' इत्यादि, 'एगे असजमे' एकोऽसयमा-पिरतिलक्षणः, 'दो चा रागदोसा' हो चैव रागद्वेपौ । तथा-'तिप्णि य' नयश्च 'दडा' दण्डा', तथा त्रीणि 'गारवा ' गौरवाणि च, 'गुत्तीनो' गुप्तयः, 'तिणि य ' निस्त्रथ । तथागुणो से युक्त होता है वही श्रमण है । यह अमण (आरमपरिग्गहा ओ विर) आरभ और परिग्रह से सर्वथा विरत होती है। पृथिवी आदि जीवों का उपमर्दन जिन क्रियाओं से होता है वे सब आरभ है। परिग्रह पाह्य और आभ्यन्तर के भेद से दो प्रकार का होता है । धर्मों पकरणो से भिन्न वस्तुओं का अपनाना-पास में रखना-तथा धर्मापकरणों पर मृ भाव-ममत्वभाव रखना यह वाद्यपरिग्रह है। मिथ्यात्व, अविरति, कपाय, प्रमाद और अशुभयोग, ये सर अभ्यन्तर परिग्रह हैं। श्रमण वही हो सकता है जो आरम और पाह्याल्यन्तर परिग्रह से सर्वया विरत रोता है । (विरण कोहमाणलोभा) इसी तरह जो क्रोध, मान, माया और लोन, इनसे विरत होता है वही श्रमण कहलाता है। ( एगे असजमे, दो चेव रागदोसा, तिणि य दडा-गारवाय, गुत्तीओ तिण्णि, तिण्णि य विराहणाओं, चत्तारिकसाया, आणसण्णा, विगहा तहा छ में श्रम छ । श्रम “आर भपरिगहाओ विरए " मा भने પરિગ્રહથી તદ્દન વિરક્ત હોય છે પૃથિવી આદિ નુ ઉપમર્દન જે ક્રિયા એથી થાય છે તે સઘળાને આર ભ કહે છે પરિમહના બે ભેદ છે–બાહ્ય પરિગ્રહ અને અભ્યાન્તર પરિગ્રડ ધર્મોપકરણે સિવાયની વસ્તુઓ પાસે રાખવી તથા ધર્મોપકણો ઉપર મૂરભાવ મમત્વભાવ રાખવો તે બાહ્યપરિગ્રહ છે મિથ્યાત્વ, અવિરતિ, કષાય, પ્રમાદ અને અશુભ યુગ એ બધા આભ્યાન્તર પરિગ્રહ છે જે બાહ્ય અને આભ્યન્તર પરિગ્રહથી સર્વથા વિત હોય છે તે श्रम यश "विरए कोहमाणमायालोमा" से प्रभाएर अध, भान, भाया अने सामथी हित डोय तेरी श्रम उपाय छे “गे असजमे, दोचेव रागासा, तिपिणयदडा-गारवाय, गुत्तीओ तिष्णि, तिण्णि य रािहणाओ,
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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