SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 980
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ટ્ reoयाकरणसूत्रे अल अमूढे मणवयणकायगुत्ते जो सो वीर-वरनयण - विरइ पवित्थर बहुविहपगारो समत्तविसुद्धबद्धमूलो धिइकदो विजय वेइओ निग्गयतेलोक्क विउलजसनिचियपीणपीवर - मुजायखंघो पचमहव्वयविसालसालो भावणातयं तज्झाणसुभग जोगनाणपल्लववरकुरधरो बहुगुणकुसुमसमिद्धो सीलसुगंधो अणण्यफलो पुणो य मोक्खारवीयसारो मंदरगिरिसिहरचूलिया इव इमस्स मोक्खवरमुत्तिमग्गस्स सिहरभूओ सवरपायवो चरिम सवरदार ॥ १ ॥ टीका- 'जनू' हे जम्बू ! 'अपरिग्गहसजुडे ' अपरिग्रहवृतःपरिग्रहः= धर्मोपकरणातिरिक्त वस्तुग्रहणम्, धर्मापकरणे मूर्च्छा च तद्भिन्नोऽपरिग्रहाः, तत्र - सघृत सलग्नो यः स चकाराद् ब्रह्मचर्यदि गुणयुक्तथ यः स, 'समणे' पाचवा सवरहार प्रारंभ ब्रह्मचर्य नाम का चतुर्थ सवरद्वार समाप्त हो चुका। यह ब्रह्मचर्य नामका चतुर्थ सवर उसी व्यक्ति के होता है जो परिग्रह से सर्वथा विरत होता है । इसलिये क्रम प्राप्त परिग्रह विरमण नाम का पाचवा सवर द्वार कहा जाता है, उसका यह प्रथम सूत्र हैजनू' इत्यादि । धर्मोपकरणों से अतिरिक्त वस्तुओ का ग्रहण करना और धर्मोपकरणों में मूर्च्छाभाव का रखना इसका नाम परिग्रह है । इस परिग्रह से जो भिन्न है वह अपरिग्रह है । ( जनू ) हे जनू ! ( अपरिग्गहसबुडे य समणे ) जो इस अपरिग्रह मे सलग्नचित्त होता है एव ब्रह्मचर्य आदि પાચમા સવરદ્વારના માર ભ બ્રહ્મચય નામનુ ચોથુ સ વતદ્વાર સમાપ્ત થયુ તે બ્રહ્મચય નામના ચતુર્થ સવર એ જ વ્યક્તિને થાય છે કે જે પરિગ્રહથી સથા વિરક્ત અને છે તે કારણે અનુક્રમે આવતા પરિગ્રહ વિરમણ નામના પાંચમા સવરદ્વારનું पर्जुन अवामा आवे छे, तेंतु या पडे सून छे" जबू " त्याहिધર્મપકરણો કરતા વધારે વસ્તુઓ ગ્રહણ કરવી અને ધમેાપકણોમા મૂર્છાભાવ રાખવા તેને પરિગ્રહ કહે છે આ પરિગ્રહથી જે ઉલટુ છે તે अपरिय सेवा छे “जबू " । अपरिग्गहसवडेय सम ' मा अपरि ગ્રહમા આસક્ત ચિત્તવાળા હોય છે અને બ્રહ્મચય આદિ ગુણોથી યુક્ત હોય "
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy