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________________ S ALARATI ६४६ प्रमण्याकरणसूचे इत्याह-'गायमुणिगा' ज्ञातमुनिना-प्रमिनियशोदपेन मुनिना भगवता महागीरेण 'पण्णाीय ' प्रमापितम्-शिष्यम्प मामान्यतया परितम् , 'पविय प्ररूपित भेदानुभेदपदर्शनपूर्वक कथितम् , 'पमिट' प्रसिदर-मर यातम् , मिष -प्रमाणप्रतिष्ठितम् , 'सिद्धपरमायण' सिद्धरामानम्-मिहाना-निष्टिनार्यानां वरशासन-प्रधानाज्ञानास्पम् , ' इण' इदम 'आरिय' जाग्यात-मरती मावेन कथितम् , 'मुदसिय' मुदेशितम् सवमनुनामुराया परिषदि मुहादिष्ट पसत्यं के अनुसार ही पालते हैं। (एव) इस प्रकार उक्त रपयर मवर हार (णायमुणिणा) प्रसिद्ध क्षत्रिय वश में उत्पन्न मुनि (भगवया भगवान महावीर ने (पण्णविय) प्रजापित किया है-शियों के लिये सामान्यरूप से कहा है। (परुविय) प्ररपित किया है-भेदानुभेद प्रदर्शन पूर्वक कथित किया है। इसलिये यह (पमिद्ध) प्रसिद्ध है-आचा र्यादिकी परपरा से इसका पालन करना इसीरूप में चला आ रहा है। तथा (सिद्ध ) सिद्ध है-इसमें किसी भी प्रमाण से बाधा नहीं आती है अत प्रमाणप्रतिष्ठिन है। तथा (सिद्धयरसोसणमिण ) जो सिद्ध हो चुके हैं-कृतकृत्य बन चुके है-उनका यह वर शाशन रूप है सो इसी को (आचिय) प्रभु महावीर ने कहा है। और (सुदेसिय) इसका उपदेश उन्हों ने देव, मनुज एव असुरों सहित परिपदा में अच्छी तरह दिया है । (पसत्थ) यर प्रथम सपर हार समस्त प्राणियों का हितकारक होने से मगलमय है। (पढम सवरदार ममत्त ) इस तरह का पयन प्रभारी पाणे छ, “एव" मा प्रभाव हा प्रभारीना २१३५नु त स१२६२ "णायमुणिणा" प्रसिद्ध क्षत्रिय पशमा सत्पन्न थये भुनि "भगवया" मावान महावीरे “पण्णविय" प्रज्ञापित ४२ जे-ध्यान भाटे मामान्य ३थे घुछ “परूविय" ५३पित रेस छे-सहानुले मतावान 534 छे तथा "पसिद्ध " प्रसिद्ध -मायायोहिनी ५२ ५२॥ २॥ माते तेनु पालन કરવાનું ચારયુ આવે છે એવુ “સિદ્ધ” સિદ્ધ થયેલ છે તેમાં કાઈ પણ પ્રમાણથી બાધા (મુશ્કેલી) આવતી નથી તેથી તે પ્રમાણપ્રતિષ્ઠિત છે તથા " सिद्धवरसासणमिण" सिद्ध य या छे, इतस्य पनी या छ-तमनु तश्रेष्ठ शासन ३५ ॥२ त “ आधविय " गडावी२ प्रभु ४९ छ " सुदेसिय" तेन पटेश भणे हेप, मानव भने सम३। सरितनी परिषहोमा सागरी मापे “पसथ " ॥ प्रथम सपवार समस्त प्रvel मान माटे हितसा डावाथी म समय छ “पढम सवरदारी
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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