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________________ सुदर्शनी टीका ० ३ सू० ४ परधनलुन्धनृपस्वरूपनिरूपणम् ०७७ =अन्यजनपदान देशानित्यर्थः परवणस्स कए' परधनस्य कृते परद्रव्यग्रहणार्थम् 'अठिहणति' अगिघ्नन्तिक्रान्ति आक्रमण कुर्वन्ति इत्यर्थ । तथा 'चाउरगमसत्तवल समग्गा' चतुरगसमसारलसमग्राः चतुभिरङ्ग = गजरथा-वपदातिस्पैः सेनाऽवयोः ममस्त सम्पूर्ण रल-सैन्य तेन समग्रा =युक्ताः चतुरगसेनायुक्ताः 'निच्छियवरजोहजुद्धमद्धा य निचितवरयोगयुद्धश्रद्धाध-तत्र निश्चितैः निर्धारित स्थायिरूपेण नियुक्तनिश्चयादि रै.प्रशस्तै यो =भटैर्यद् युद्ध तत्र श्रद्धा-प्रेमादरो येपा ते तथा ' जहमह मिति दप्पिएहि 'जहमहमितिदर्पितै'' नहमेवकवीरः' इ-येव टर्पित. = गरित 'सेन्नेति' सैन्येः 'सपरिवुडा' सम्परिश्ता' सनद्धाः साज्जीभूता 'पउमसगडप्रटचासागरगम्ल हादिएहि ' पद्मशकटमचीचक्रसोगरगरुडव्यहादिकै = पनाकारन्यूहराकटव्यूहबूचीब्यूटचक्रव्यूहसागरव्युहगरडव्यूहादिका सैन्यर वनाविकान्ते विद्यन्ते येषु तैस्तथाभृते., 'जगीएहिं ' अनी कैः(लुद्धा ) लय तोकर ( पर चणस्म कर) दूसरों का धन लेने के लिये (परविस ) दूसरे राजाओं के देशो के ऊपर ( अहिरणति ) आक्रमण करते हैं, ता (चाउरगसमत्तलसमग्गा) गज, रथ, अश्व एव पदाति रूप चार अगों वाली सेना से युक्त एब (निच्छियवरजोरजुद्वसद्धा य) स्थायी रूप से नियुक्त किये हुए अथवा अटल निश्चय से युक्त हुए ऐसे प्रगस्त योद्धाओंके साथ युद्ध करने मे आदरभाव वाले और (अहमहमिति दप्पिहिं ) “म ही एक वीर " -स प्रकार के गर्व वाले ( सेन्नेहिं ) मैन्य से (सपरिचुडा ) परिवृत-युक्त होकर (पउमसगड माचकसागरगमलतादिहि ) पद्माकार व्यूहवाले, कटव्यूहवाले, सूचीव्यहवाले, चक्रव्यूहवाले, नागरन्यूवाले, एवं गरुडव्यूह आदि वाले (अणीहि ) सैन्य से प्रतिपक्षी के सैन्य को (उच्चरता) --- - - - थन “ परधणास कए " मी-तनु धन प्राप्त उपाने भाटे “परविसए" ilea शतना प्रदेश ६५२ " अहिहणति" भY 3, तथा 'चाउरग समत्त -वल्समग्गा" था, २५, म अने पायो यतु जी सेना मड़ित मन " निच्छियवरजोहजुद्धमद्धा य' भ्याथी ते उरेस मवा १८ निश्चयवाणा અને યુદ્ધ કવ્વામા આદરભાવ રાખનારા પ્રાન્ત દ્ધાઓની સાથે અને " अहमहमिति दप्पिएहिं” “हु मे पी२ 3 " को san "सेन्नेहि" मेन्यथा “सपरिखुडा" परिवृत-युत थने “पउमसगडसूइचफसागरगरुल्लूहादिपहि" 45 व्यूडवाणी, १४८च्यूउवा, सूथी-यूपाणा, यव्यू पाणा, २२ व्यूडवाण भने १२७ आदि व्यूवात, “अणीएहिं " मेन्यथी
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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