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________________ २७६ - - प्रशयाकरणस्ने एच येऽपि च कन्त्यि तादान' मिति पत्रमान्तर निरुप्य यथा च कृतम् ' इत्यदत्तादानस्प तृतीयानारिमाह-'पिउपले'त्यादि मूलम्-विउलवलपरिग्गहा य वो रायाणो परधणम्मि गिद्धा सए दवे असतुहा परविसप अहिहणति लुबा परधण स्स कए, चउरग समत्तवलसमग्गा निच्छिय बरजोहजुद्धसद्धा य अहमहमितिदपिएहि सेन्नेहि संपरिखुडा पउमसगडसूइचक्कसागरगरुलबहादिएहि अणीएहिं उच्छरता अहिभूय हरति परधणाइ ॥ सू० ४ ॥ टीका-'विउलालपरिग्गा य' विपुअलपरिग्रहावना विपुलम्-विशाल बल-सामर्थ्य सैन्य मा परिग्रहा परिमारी येत ते तथा, बहन =अने के 'रायाणी' राजानः 'परधणम्मि गिद्धा' परधने गृद्धा' परदव्यासक्ता' 'सए दो' स्वके द्रव्ये -निजधने असतुहा' असन्तुष्टाः 'लुद्रा' लोभवन्त सन्तः 'परविसए' परविषयान् भिन्न इसी तरह से और भी व्यक्ति जो दूसरों के द्रव्यहरण करने रूप कार्य में चिरति भाव से रहित होते ह, इन सरको चोरो की श्रेणि मे ही परिगणित जानना चाहिये ॥स०३ ॥ ___इस तरह " जो अदत्तादान को करते है " इस रूप यह पचमअन्त र कहकर अव सत्रकार " यथा च कृतम् " इस तृतीय अन्तार का कहते है-'विउल जलपरिग्गहा ' इत्यादि । ___टीकार्थ-(विउलबलपरिग्गहा) विपुल सैन्य एवं परिवारवाले (बहवो रायाणो) अनेक राजा लोग (परधणम्मि गिद्धा) परधन म आसक्त तथा (सए दवे अमतुट्ठा) अपने पास के द्रव्य मे असतुष्ट और લે કે જે બીજાના દ્રવ્યનું અપહરણ કરવાના કાર્યમાં વિરતિભાવથી રહિત હોય છે–તે કાર્યમાં લીન હોય છે–તે બધાને ચોરની શ્રેણીમાજ મૂકવા જોઈએ. સૂછ3 આ રીતે “જે અદત્તાદાનનું સેવન કરે છે તે પ્રકારના આ પાચમાં सन्तरिनु उथन गने हुवे सूत्रधार " यथा च कृतम्" तेत्री मानु उथन ४२ छ-" विउलबलपरिग्गहा ” धत्यादि ___ -"विउलवलपरिगहा" विधुद मन्य गने परिवार प॥ “बह्वो रायाणो "मने शलमो “परधणम्मि गिद्धा" ५२धनमा सासरत तथा "सए दव्वे असतुहा " पातानी पायेना द्रव्यथा मसतुष्ट भने ' लुद्धा" सोमयुत
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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