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________________ प्रकाचिका टीका-पञ्चमवशफारः स्मृ. ६ यानादि निष्पन्नानन्तरीयशनकर्तव्यनिरूपणम् ६५६ सम्पूर्णो महेन्द्रध्वजवर्णको ग्रायः 'पुरो पकडिजमाणेणं' पुरतः अग्रतः प्रकृष्यमाणेन निर्गम्यमानेन 'चउरासीए सामाणि जाव पडिबुडे' चतुरशीत्या सामानिकसहस्रैः परिवृतः युक्तः, अत्र यावत् 'बउहि चउरासीहि आयरक्खदेवसाहस्सीहि' इत्यादि ग्राह्यम् 'सन्विद्धीए जाव रवेणं' सर्वद्वयर्या याबद्रवेण अत्र यावत्पदात् 'सबज्जुईए' इत्यारभ्य 'महया इद्धीए' इत्यन्तम् तथा मया हयणगीयसाइय' इत्यारभ्य 'पडपडहवाइय' इत्यन्तं सर्व ग्राह्यम्, एतेषां प्रत्येकपदानां व्याख्यानम् अस्मिन्नेव वक्षस्कारे द्रष्टव्यम् 'सोहम्मरस कप्पस्स मज्झं मज्झेणं तं दिव्वं देवद्धिं जाव उबदंसेमाणे उपदंसे माणे' सौधर्मस्य कल्पस्य मध्यं मध्येन उवदलेमाणे २ जेणेव सोहम्मल्स कप्पास उतरिल्ले णिज्जाणमग्गे तेणेच उवागच्छह इस प्रकार से बह शक उस पञ्च प्रकार की सेना र परिक्षित हुआ यावत् जिलके आगे २ महेन्द्र ध्वज चला जा रहा है और जो ८४ हजार सामानिक देवों से परिश्रुत है यावत् ८४-८४ हजार आत्मरक्षक देवों से जो घिरा हुआ है अपनी पूर्ण सनस्त ऋद्धि के साथ, यावत् सर्व धुति के साथ २ गाजे वाजे पूर्वक सौधर्मकल्प के ठीक बीचोबीच से होता हुआ अपनी उस दिव्य देवर्द्धि को दिखाला दिखाता जहां सौधर्मकल्प का उत्तरदिग्दर्ती निर्याण मार्गनिकलने का रास्ता था यहां पर आया यहां प्रथम यावत्पद से महेन्द्र ध्वज का वर्णनात्मक पूर्ण पाठ गृहीत हुआ है नितीय यावत्पद ले 'चाहिं चउरासीहिं आयरक्खदेवसाहरूसीहिं' इत्यादि पाठ का ग्रहण हुआ है तृतीय पावत्पद से 'सधज्जुईए' इस पद से लेकर 'पडपडहवाइय' यहां तक का सब पाठ गृहीत हुआ है इस पाठ के प्रत्येक पदों की व्याख्या इशी पक्षकार के कथन में की गई है अतः वहीं से इसे देख लेना चाहिये चतुर्थ श्रावन्द से' तां दिव्यां देवद्युति तं दिव्य देवानुभावं' इन पदों का ग्रहण हुआ है 'उवागच्छित्ता जोयणसय साहજેની આગળ-આગળ મહેન્દ્રવજ ચાલી રહ્યો છે અને જે ૮૪ હજાર સામાનિક દેથી પરિવન છે યાવત ૮૪-૮૪ હજાર આત્મરક્ષક દેવી પરિવૃત છે, પિતાની પૂર્ણ, સમસ્ત ત્રાદ્ધિની સાથે, ચાવત્ સર્વ પુતિની સાથે-સાથે-ઉત્તમ માંગલિક, વાદ્યો સાથે સૌધર્મ ક૯૫ના ઠીક મધ્યમાં થઈને પિનાની તે દિવ્ય દેવદ્ધિને બતાવતો બતાવતો જ્યાં સૌધર્મ કલ્પને ઉત્તર દિગ્વતી નિયણ માર્ગ–નીકળવાને માર્ગ હવે ત્યાં આવ્યું અહીં પ્રથમ થાવત્ પદથી મહેન્દ્ર ધ્વજને વર્ણનાત્મક પૂર્ણ પાઠ સંગૃહીત થયું છે. દ્વિતીય યાવત ५.थी 'चउहिं चउरामीहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं' वगैरे ५७ सहीत थयो . तृतीय यावत् ५४थी 'सव्वज्जुईए' मा पहथी'पडुण्डहवाइय' मही सुधीन 413 स. હીત થયો છે. આ પાઠમાં આવેલા દરેકે દરેક પદની વ્યાખ્યા આ વક્ષસ્કારના કથનમાં
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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