SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ आवश्यकसूत्रस्य यद्वा-"अखण्डित सूत्रमुच्चारणीय" मित्यनुशासनात् , मूत्रेऽक्षरमात्रस्या हीनतयाऽधिकतया योचारणे "हीणखर अञ्चक्खर" इत्यादिना ज्ञानाऽऽशातना ऽऽख्यापनाच मूत्रमखण्डमेव पठनीयम् , अन्यथा यद्यद्रत गृहीतमस्ति तत्तद्विषय कपाठमेव तस्मानिस्सार्य पठने तु हीनाक्षरात्यक्षरायनेकदोपाः सभवन्ति सर्वेपा तादृशयोग्यताया असभवात् । सत्यामपि योग्यतायामेवकरणेऽन्येषा मीयोदिसभवः 'यदहमप्येव कथ न करोमी' ति, तेन च यथोक्तमूत्रशैलर विश्वससभवात् , तत्तपाठचैपम्याचाऽतिशयेनातिचारसभवस्तस्मात् सर्वैरखण्डतयै सूत्रोच्चारण करणीयमिति सिद्धम् ।। अथवा शास्त्रों में कहा गया है कि-'अखण्डित सूत्रमुच्चारणीयम अर्थात् सूत्र अखण्डित बोलना चाहिए। इस कथन से यह सिद्ध कि खण्डित सूत्र बोला ठीक नहीं है। जिसने जो व्रत लिया। वह यदि उसी व्रतका पाठ निकाल कर पढे तो 'हीनाक्षर' 'अत्यक्षर आदि बोलने के अनेक दोष लगेंगे। क्योंकि सबमें ऐसी योग्यत नहीं होती कि वे उस-उस पाठ को शुद्ध रीति से निकाल कर प सकें। जिन थोडे से व्यक्तियों में ऐसी योग्यता है वे यदि ऐसा करे तो दूसरे अज्ञ जन उनका अनुकरण करने लगेंगे। क्योंकि अधिकार लोग अनुकरणप्रिय होते है। इससे उपरोक्त सूत्र-पठन-शैली । बहुत बाधा पहुँचेगी। अतण्व श्रुतपठन के अतिचार टालने के लि आवश्यकता है कि सूत्र अखण्डित पढा जाय । અથવા શાસ્ત્રોમાં કહેવુ છે કે – "अखण्डित मूनच्चमुच्चारणीयम्" अर्थात सूत्र मति मासपुर मे-२ વાકયથી એ સિદ્ધ થાય છે કે ખાડિત સૂત્ર બેલવુ તે ઠીક નથી જેણે જે વ્રત લીધુ तन मे प्रत। 8 टीन पाये तो "हीनाक्षर अत्यक्षर" मा मने है। લાગશે, કારણ કે સર્વમા એવી યોગ્યતા નથી કે તે સર્વ પાઠને શુદ્ધ રી ઉચ્ચારણ કરી શકે જે ડીએક વ્યકિતઓમા એવી ગ્યતા છે તે છે એ પ્રમા કરશે તે બીજા અજાણ્યા માણસે તેનું અનુકરણ કરવા લાગી જશે કારણ કે મોટા ભાગના માણસને અનુકરણ પ્રિય છે તે કારણથી ઉપ કહેલ સૂર-પઠન-રેલીમા બહુજ હરક્ત આવશે એ કારણથી શ્રુત અભ્યાસ અતિચાર નિવારણ માટે જરૂર છે કે સૂર અખડિત વાચવુ
SR No.009344
Book TitleAavashyak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages575
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy