SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आवश्यकमूत्रस्य पुष्पादिभिरेव पूजनमिति शक्यते वक्तु, तथा सति महच्छन्दस्यापि तथास्वापतेः। न चास्तु का नो हानिरिति वाच्यम्, एर सति 'महाबाहुमहाशयः' इत्यादा वपि 'पुप्पादिपूजितवाहुमान्' 'पुष्पादिपूजिताऽऽशयवान्' इत्यसातार्थी पत्तेः, पूजार्थस्महधातुनिष्पन्नमहन्छन्दस्य तंत्र तत्रापि सत्त्वाद, न च 'विनिगमनाविरहात्पुष्पादिपूजनमप्यर्थः स्यादित्युदनीय, वीतरागाणा सावधपूजाऽनौचित्य रूपाया विनिगमनाया अनुपदमुक्तत्वात्, स्त्रैिव भवदाग्रहे 'महामोह पकुवई' (दशा० स्क) 'महावाए व पायते' (दशौ०) 'महासमिण पासित्ताण पडिकल्पनामात्र है, क्यों कि ऐसा माननेसे जो जो शब्द मह धातु से धनते हैं उन सब जगहों में पूर्वपक्षी के कथनानुसार 'पुष्पादि से पूजन' रूप अर्थ मान लेने पर 'महायाहु, महाशय' आदि शब्दा के भी 'पुष्पादि से पूजित भुजावाले' 'पुष्पादि से पूजित आशय चाले' आदि अनिष्ट अर्थ होने लगेंगे। यदि कहें कि-'किसी अर्थ विशेप का निश्चय न रहने के कारण 'मह धातु' के 'विशाल' 'उदार' आदि अर्थ की तरह' पुष्पादिपूजनरूप' भी अर्थ ले सकते हैं तो इसका उत्तर पहले ही दे चुके हैं कि-'वीतरागों के सावध पूजन का न होना ही पुप्पादिपूजनरूप अर्थके न होने मे नियामक है, और ऊपर लिखी हुई सस्कृत टीका में दिखलाये हुए महामोह' आदि स्थलों में तथा अन्यत्र भी जहा कही 'मह' धातु का प्रयोग કેમકે એ પ્રમાણે માનવાથી જે શબ્દ મદ ધાતુથી બને છે તે સર્વ સ્થળે પૂર્વ પક્ષીના કહેવા પ્રમાણે “પુષ્પાદિથી પૂજન” રૂપ અર્થ માની લેવાથી “મહાબાહ, મહાશય આદિ શબ્દોને પણ “પુષ્પાદિથી પૂજિત ભુજાવાળા,” “પુષ્પાદિથી પૂજિત આશયવાળા વગેરે અનિષ્ટ અર્થ થવા મડશે જે કહેશે કે “કઈ અર્થ વિશેષને निश्चय नहि रवाना र 'मह' धातुनो 'विशG माह मय प्रमाणे 'yone પૂજનરૂપ પણ અર્થ લઈ શકાય છે તે તેને ઉત્તર પ્રથમજ આપી ચૂકયા છીએ કે “વીતરાગ ને સાવધ પૂજન ન થવુજ પુષ્પાદિપૂજનરૂપ અર્થ નહિ 38 ५५41 भाट नियाम छ मन पर समेसी सतहमा मतस 'महामोह' આદિ સ્થળમા તથા બીજા સ્થળે પણ જે ઠેકાણે "મ ધાતુને પ્રયોગ આવે છે १-एकतरपक्षपातिनी युक्तिविनिगमना तस्या विरहोऽभावस्तस्मात् ।
SR No.009344
Book TitleAavashyak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages575
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy