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________________ _! आवश्पकमूत्रस्य जावजीव तक, भार से तीन करण तीन योग से दुसरा महाव्रत के विषय जो कोई पाप दोष लाग्यो होय तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छामि दुफड ॥२॥ • तीसरा महावत के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो होय तो आलोज, देव अदत्त, गुरु अदत्त, राजा अदत्त, गाथापति अदत्त, साधर्मि अदत्त, द्रव्य से इनकी चोरी की रोय, क्षेत्र से समस्त लोक में, काल से जावजीचतक, भाव से तीन करण तीन योगसे तीसरा महाव्रत के विषय जो कोई पाप दोप लाग्यो होय तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छामि दुकड ॥ ३ ॥ - चौथा महाव्रत के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो रोय तो आलोऊ, कामराग, स्नेहराग, दृष्टिराग, देवता सम्बन्धी, मनुष्य सम्बन्धी, तिर्यच सम्बन्धी, द्रव्य से काम भोग सेव्या होय, क्षेत्र से समस्त लोक में, काल से जावजीवतक, भाव से तीन करण तीन योग से चौथा महाव्रत के विषय कोई पाप दोष लाग्यो होय तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छामि दुक्कड ॥४॥ पाचा महावत के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो होय तो आलोज, सचित्त परिग्रह, अचित्त परिग्रह, मिश्र परिग्रह, द्रव्य से छति वस्तु पर मूर्छा की होय, पर वस्तु की इच्छा की होय, सूई कुसग धातु-मात्र परिग्रह रारयो होय, क्षेत्र से सम त लोक में, काल से जावजीव तक, भाव से तीन करण तीन योग से पाचवा महाव्रत के विषय जो कोई पाप दोष लाग्यो होय तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छामि दुक्डं ॥५॥ छट्ठा रात्रि भोजन के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो होय तो आलोऊ, चार आहार असण, पाण, खाइन, साइम, सीत-मात्र, लेप मात्र, रातयासी राख्यो होय, रखायो होय, राखता प्रत्ये भलो जाण्यो होय तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छामि दुबड ॥६॥ अठारह पाप (१) प्राणातिपात (२) मृपावाद (३) अदरसादान (१) मैथुन (५) परिग्रह (६) क्रोष (७) मान (८) माया
SR No.009344
Book TitleAavashyak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages575
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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