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________________ मुनितोपणी टीका धर्माचार्यभेदेनाऽऽचार्यत्रैविध्य तथाऽप्यर्हत्सिद्धसाहचर्यान्नमःपदसान्नि याचात्र धर्माचार्याणामेव ग्रहणम्। तत्त्व' च सूत्रार्थज्ञावत्वार्थवाचकत्व-गच्छमेधीभूतत्व-गणचिन्तारहितत्व-स्त्रीकथा-राजकथा-देशकथा-भक्तकथा-सम्यक्त्वशैथिल्यकथावकत्व, तथा नवविधब्रह्मचर्यगुप्तिधारकत्व-पत्रेन्द्रियसवरणकारकत्व-कपायचतुष्टयरहितत्व-पञ्चमहावतोपेतत्व- पञ्चविधाचारपालकत्व- पञ्चसमितिसमितस्व-गुप्तित्रयगुप्तत्वरूपपटरिंशद्गुणवत्व, सारणा-वारणा-धारणा - नोदना-प्रतिनोदनावत्त्व च । तत्र सारणा-विस्मृतसामाचारिकेभ्यो मुनिभ्यः, 'मुने ! भवतेद आचार्य के तीन भेद हैं, तो भी 'अरिहत' 'सिद्ध ' तथा 'नमो' पद् के साहचर्य से यहा पर धर्माचार्य का ही ग्रहण है। जो सूत्रार्थ को जाने, शिष्यों को प्रवचन का मर्म समझावे, गच्छमें मेढी (खलिहान का खभा) समानहो, गण की चिन्ता से रहित हो, सम्यक्त्व को शिथिल करनेवाली कथा का वर्जन करे, तथा नौ वाड ब्रह्मचर्यधारण (९), पांच इन्द्रियों को जीतना (१४), चार कषायो का परित्याग (१८), पाच महाव्रतों (२३) और पांच आचारों का पालन (२८) पाच समिति (३३) और तीन गुप्तियों का धारण (३६), इन उत्तीस गुणों से तथा सारणा, वारणा, धारणा, चायणा, पडिचायणा से युक्त हो। उनमें सारणा-प्रमादवश सामाचारीमें भूले हुए मुनिको ले छे तो पg 'अरिहत' 'सिद्ध' तथा 'नमो' पहना इयथी भाडया ધર્માચાર્યનું જ ગ્રહણ છે જેઓ સૂત્રના અર્થને જાણે શિષ્યને પ્રવચનનું રહસ્ય સમજાવે ગરછમાં મેધિ સમાન ગણની ચિંતાથી રહિત હોય સમ્યકત્વ શિથિલ થાય એવી કથાનું વર્જન કરે તથા નવતાડ બ્રહ્મચર્યનું પાલન, (૯) પાચે ઈદ્રિને छतची (१४) थारे पायाने। त्याग (१८) पाय मानतो (२३) तथा पाय આચારેનું પાલન (૨૮) પાચ સમિતિ (૩૩) અને ત્રણ ગુપ્તિઓનું ધારણ કરવું આ છત્રીસ (૩૬) ગુણેથી તથા સારણા, વારણા, ધાણુ, ચેયણ અને પડિયjથી યુકત હોય તેમા સારણા પ્રમાદથી સામાચારીમા ભૂલેલા મુનિને યોગ્ય જ્ઞાન આપવું १ धर्माचार्यत्वम् ,
SR No.009344
Book TitleAavashyak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages575
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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