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________________ मुबोधिनी टीका. म. १७७ मा भोवस्य पत्र भवजोवप्रदेशिगजवर्णनम् . २६७ अहमन्यदो यावत् चोरमुपनन्ति , तत: खल अहं त पुरुष मतः समन्तात . समभिलोके नैव खलु तत्र जीवं पश्यामि, तनः ग्वल अहं तं पुरुषं द्विधा स्फाटितं करोमि, कन्या सर्वतः समन्तात सममिलोके. न चैव खल तत्र जीव पश्यामि, एवं त्रिधा -तुर्धा संख्येयधा स्फाटितं करोमि न चैव तत्र जीवं पश्यामि, यदि खलु भदन्त ! अहं तस्मिन् पुरुषे द्विधा वा त्रिधा वा चतुर्धा वा अहं अन्नया जाव चोर उवणेनि) मैं एक दिन १३५३ सूत्र में कथित अनेक गणनायक आदिकों के माथ उपस्थानशाला में बैठा हुआ था वहां , पर मेरे नगर रक्षक मुमकिया बन्धन से बांधकर एक. चोर को लाया (तए णं अहं तं पुरिसं सबओ ससंता ममभिलोएमि) मैंने उस. पुरुष को मम्तक से लेकर चरणपर्यन्न अच्छी तरह से देवा (नो चेव णं तत्थ जीवं पासामि) परन्तु मुझे वहां पर जीत दखने में नहीं आया. (तए णं अहं तं पुरिसं दुहा फालियं करेमि) इसके बाद मैंने उस चोर के दो टुकडे कर दिये. (करित्ता मन्त्र ओ समंना मामिलोएमि.) दो टुकडे करने के बाद फिर मैंने उपका अच्छी तरह से सब ओर से निरीक्षण किया (नो चेव णं तस्थ जीवं पायामि) परन्तु फिर भी वहां पर मुझो जोव देखने में नहीं आया (एवं तिहा, चउहा, संखेजहा फालिय' करेमि-नो चेवणं तत्थ जीव पासामि) तदनन्तर मैंने उसके तीन टुकडे फिये, चार टुकडे किये, यावत संख्यात (सैंकडे) टुकड़े किये परन्तु फिरभी वहां मुझे जीव नहीं दिखा (जइ णं भंते! अहं तसि पुरिसंसि दुहा वा तिहा बा चउहा चोरं उवणे ति) ये हिपसे १३५ मा सुत्रमा यित घl नायवगैरेની સાથે બાહ્ય ઉપસ્થાન શાળામાં બેઠે હતું. ત્યાં મારા નગરરક્ષકે એક ચિરને भुटाट माधान भारी सा दाव्या. (तपणं अह त परिसं सवओ समंता ममभिलोएमि) में ते ५३पने भतथी भांडी पा संधी सारी शत भयो. (नो चेव णं तत्थ जीव पासामि) पY भने तेभा १ हेमायो नही. (तएणं अहं तं पुरिसं दुहा फालियं करेमि) त्यार पछी मैं ते यार ५३पना मे ४४४ 30 नाभ्या. (करित्ता सवओ समंता समभिलोएमि) मे आया. उशन पछी में तेनु सारी शत निरीक्षy यु: (नो चेव तस्थ जीवं पासामि) पय भने त्यो भाय नही. (एवं तिहा. चउहा. संखेज्जहा फालियं करेमि-नो चेव णं नस्थ जीबपासामि) त्यार पछी मैं तेना न ४४ ४यो, प्यार ४४४॥ या ચાવતું સંખ્યાલ (સેંકડે) કકડા કર્યા પણ છતાં એ ત્યાં મને જીવ' દેખાય નહીં.
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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