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________________ राजrateex १७० त्व' चित्र ! तैरेव चतुर्भिरश्वैः अश्वरथं युक्तमेव उपस्थापय यावत् प्रत्यय | तनः खलु स चित्रः सारथिः प्रदेशिना राज्ञा ववमुक्तासन हट तुष्ट-याचत हृदय उपस्थापयति, एतामाज़तिकां प्रत्यर्पयति । तनः खलु स मदेशी गजा चित्रस्य सारथेरन्तिके एतमर्थ श्रुत्वा निशम्य हृष्ट तुष्ट यावद् अल्पभरणालङ्कृतशरीरः स्वाद् गृहाद् निर्गच्छति, व चातुष्टः अश्वरथ शक्ति से युक्त हुए इन्हें देखिये । (तए ण से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं वयासो) तब उस प्रदेशी राजाने चित्र सारथि से ऐसा कहा -- (गच्छाहिणं तुम चित्ता ! तेहिं चैव चउहि असेहि ग्रासरह जुतामेा उबवेहि जान पचपणाहि ) हे चित्र ! तुम जाओ और उन्हीं कम्बोज से प्राप्त हुए चारों घोड़ों से युक्त करके अश्वग्य को तैयार कर ले आओ। और उस त्रात की मुझे पीछे बर दो (नए ण से चित्रे सारही पएक्षिणा रन्ना एवं वृत्ते समाणे हट्ट जान हियए उन एयमाणत्तिय पचपि) इस प्रकार से प्रदेशी राजा द्वारा कहा गया वह चित्र सारथि बडा ही हृष्टतुष्ट चावत् हृदयवाला हुआ और उसने चार घोडों से युक्त करके अश्वस्थ को उपस्थित कर दिया, बाद में प्रदेशी राजा को इसका निवेदन किया (तए णं' से पएसी राया चित्तम्म सारहिस्स श्रंतिए एयम सोचा निसम्म हट्ट जाव अप्पमहग्धाभरणालगिसरीरे साओ गिहाओ णिगच्छद) इसके बाद प्रदेशी राजा चित्र से परसी राया चित्तं यित्रसारथीने या प्रमाणे थी युक्त थयेला ते घारा निरीक्षण . ( सारहिं एवं वयामी) त्यारे ते प्रदेशी राममे ( गच्छहि गं तुम चिता ! तेहि चेत्र चउहि आसेहि आसरह जुत्तामेव उबवेहि जान पञ्च पिणाहि ) हे चित्र ! तमे लगो भने ते गोन्डेशना नागરિકાથી પ્રાપ્ત થયેલા ચારેચાર ઘેાડાઓને રથમાં જોડીને તે અધરથ અહીં ઉપસ્થિત १. अने ते पछी भने आा वातनी अमर या (तएण से चित्तें सारही एसिणा रन्ना एवं वृत्ते समाणे हडतुड जाव हियए उबटुवेइ एयमाणत्तियं पचपिण्ड ) या प्रमाणे प्रदेशी शब्न वडे भाज्ञाचित थयेलो ते चित्रसारथि ખૂબજ હતુષ્ટ હૃદયવાળા થયા અને તેણે ચારેચાર ઘેાડાએથી સજજ કરીને અશ્વરથ ત્યાં રાજાની સેવામાં ઉપસ્થિત કર્યાં. અને ત્યાર પછી તેની ખખર રાજાની પાસે पहाडी. (तए णं से पएसी राया चित्तस्स सारहिस्स अतिए एमई सोचा निसम्म हड्तु जात्र अप्पमद्दग्धाभरणाल कियमरीरे साओ गिहाओ ૧૪૬) ત્યારપછી પ્રદેશી રાજા ચિત્ર સારથિની અશ્વરથ ઉપસ્થિત થઇ જવાની
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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