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________________ राजमायसूत्रे मृन्दम्-नाणं से केसीकुमारसमणे चित्तंसारहिं एवं बयासीएवं बन्ट चउहि ठाणेहि चित्ता ! जीव केवलिपन्नत्तं धम्म नो लभेजा, रवणयाग, न नहा- आरामगय वा उजाणगयं वा समणं वा माह बाणो अभिगच्छद णो वंदइ णो णमंसइ णो सहारेइ णो लामाणेड णो कटाणं संगलं देवयं चेइय' पजुवासेइ, नो अदाइ उई परिणाइ. कारणाई वागरणाई पुच्छेइ. एएणं ठाणेणं चित्ता ! जीव कंवलिपन्ननं धम्म नो लभइ सवणयाए । (१) उवस्तयगय मग बान चेव जाव पाणवि ठाणे चित्तो ! जीवे केवलिपन्नत्त धम नो लभड लवणवाए । (२) गोयरग्गगयं समणं वा माहणं वा नी जाव पवासइ,नो विउलेणं असण.पाणखाइमसाइमेणं पडिलामा० नो अटाई जाव पुच्छड , एएणं ठाणेणं चित्ता ।जीवे केवलि- . पन्नन घन्म नो लभइ लवणयाए । (३) जत्थ वि णं समणेणं वा माणेण वा सद्धि अभिसमागच्छ तत्थवि ण हत्थेण वा वत्थेण बा शेण वा अप्पाणं आवरित्ता चिट्टइ, नो अटाई जाव पुच्छइ, यि चाणण चित्ता ! जीवे केवलिपन्नत धम्म' णो बमा नवप्रयाग, (१) पाहि च ण चित्ता ! चउहि ठाणे िजीव नो लभइ कलिपन्नत धम्म सवणयाए । चम. टा. चिना : जीई केवलिपन्न धम्म लभद सरणका नं .) आरामग वा उन्नाणगयं वा समगं वा माहणं यादा नमसा जाब पवासह अनाई जाब पुच्छड़, पण टाणेण मिाजी कवलिपन्नत धन लभह सबणयाए । एवं [२] उव मगर [4] गोबरगग समणं वा जाब ६ वासड़. बिउलेग जाय
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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