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________________ राजप्रश्नीय सत्र एवमबादीत्-एवं वलु अहं भदन्त ! जितशत्रुणा राज्ञा प्रदेशिनो राजइंद महार्थ यावद् विसर्जितः, तदेव यावत समवसरत खल भदन्त! यूयं श्वेतविकां नगरीम् । ततः खलु केशीकुमारश्रमणः चित्रण सारथिना द्वितीय 'तएणसे केली कुमारसमणे' इत्यादि। सूत्रार्थ-(तएण) इसके बाद (से केसीकुमारसमणे) उन केशिकुमार श्रमण जब चित्र सारथी ने ऐसा कहा-तव ( चिस्स सारहिस्स) चित्र सारथी का (एयमढ णो अढाइ, णो परिजाणाह, तुसिणीए संचिट्टइ) इस अर्थको आदर नहीं दिया, उसे विचार का विषय नहीं बनाया. किन्तु चुपचाप हो रहे (तएण ले चित्ते सारही केसिकुमारसमण' दोच्च पि तच्चपि एवं वयासी) इसके बाद चित्र सारथीने पुनःदुबारा भी और तिवारा भी उन केशिकुमारश्रमण से ऐसा ही कहा कि (एत्र खलु अई भते ! जियसन्तुणा रणा पसिस्स रणो इन महत्थ जाव विसजिए त चेव जात्र समोसरह णं भते ! तुम्मे सेयविय नयरिं) हे भदन्त ! जितशत्रु राजा के द्वारा मैं ऐसा कहा गया हूं कि हे चित्र ! तुम इस महार्थादि विशेषणों वाले घामृत (भेट) को लेकर प्रदेशीराजा के पास जाओ सो मैं वहां जा रहा हूं-वह श्वेतांविंका नगरी दर्शनीय श्रादि विशेषणों वाली है अतः वहां __ पधारे (तएणसे केसीकुमारसमणे चित्तेण सारहिणा दो चपि तच्च पि एवं 'त एण से केसीकुमारसमणे' इत्यादि। सूत्रार्थ:-(त एण) त्या२ पछी (से केसीकुमारसमणे) ते शिgभार श्रमाने न्यारे थिसारथी थे २ प्रमाणे ४ो त्यारे (चित्तस्स सारहिस्स) साथिना (एयम णो आढाइ, णो पारजाणाई, तुसिणीए सचिट्ठइ) मा अर्थाने આદર આપે નહિ, તેના કથન પર કઈ પણ જાતને વિચાર કર્યો નહિ, તેઓ આ मधु सामणीने भौन २१ २ह्या. (तएण से चिते सारही केसिकुमारसमण दोचपि तचापि एवं वयासी) त्या२ मा चित्र साथिये भी मत भने श्री० मत पY शिमार श्रमणुन मा प्रभारी (एवं खलु अहं भते! जियसत्तुणा रणा पएसिस्स रणो इम महत्थ जाव विसज्जिए त चेत्र जाव समोसरह ण भ'ते! तुम्भे सेयविय नयरिं) 3 महत! तिशत्रु રાજાએ મને આ પ્રમાણે કહ્યું છે કે હે ચિત્ર! તમે આ મહાર્ણાદિ વિશેષણોવાળી ભેટને લઈને પ્રદેશ રાજાની પાસે જાવે. જેથી હું ત્યાં જઈ રહ્યો છું. તે તાંબિકો नगरी शनीय वगैरे विशेषवाणी छे तेथी तमे पY त्या वयात. (त एण से केसिकुमारसमणे चित्तण सारहिणा दोच्च पि तच्चपि एवं वुत्त समाणे -
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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