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________________ ६० राजप्रश्नीयसत्रे पर्युपास्ते । अत्र याकडेन जमो अन्नमवत' इत्यारभ्य 'अभिनुहाविगएण पंजालउडा' इत्पन्नावोऽपि पाठ औपातिकत्रोक्तचम्पानगरीगत श्री महावीरस्वामिलमायानपठितः सोऽपयन बाल्या, नवरा-अत्र छत्रा दयस्तीर्थ करातिशेषाः न बायाः। तालमणे भगवं. महावीरे' इत्यादि। भगवन्नाम स्थाने पासायबिज्जे केसी नाम कुमारसमणे जाईसंपण्णे . इत्यादि बाच्यम् । अन्न 'जन - शब्द इति न इत्यादौ इति शब्दो वाक्याः । लङ्कारे' 'वा' शब्दः लमुन्धये इति ...... 'सए गं तल चिन्तन, इत्यादि-ततः खलु तस्य चित्रस्य सारथे । तं महान्त जनशब्दच थावत् जनसंनिपातं च शुल्ला आकण्यं तं. महान्तं मनुष्यों का जो एक जगह मिलान होता है उसका नाम जनसन्निपात है। यावत उग्र, उग्नपुत्र आदि को की परिपक्षाने पयुपासना की यहाँ यावत् शब्द से 'बहुजणो. अण्णमण यहां से लेकर 'अभियुहा विणएण पंजलि उडा' यहां तक का सच पाठ. जो कि औपतिकवन में ३८ वे सूत्र में चम्पानगरीगत श्रीमहावीर स्वामी के आगमन के पास में लिखा जा चुका है, ग्रहण किया गया है। उस पाठ गत छत्रादिक जो कि तीर्थकर प्रकृति के अतिशयरूप हैं, यहाँ ग्रहण नहीं करना चाहिये-तथा सिमेणे भगवमहावीरे' इत्यादि भगवन्नाम के स्थान में लांसाच्चिने केसी नाम' कुमारसमणे जाइस पन्ने ऐला. पाठे कहना चाहिये, “जनशब्द इति वा' इत्यादिपाठ में आगत. इति शब्द वाक्याल कार और 'वा' शब्द. समुश्चय में आया है। 'तरण तस्ल चित्तस्म' इत्यादि इसके बाद उस चित्र सारथि को उस में स्थान या यात्राय । तेनु नाम निपात छ. यावत् , अपुत्र वगैरेनी परिपहारी पथुपासना . यावत् ७४थी 'बलुजणों अण्णमण्णस्स" माथी भजन "अभिवहां विणएजजलिउड सुधी भोपाति: सूत्रना ૩૮ મા સૂત્ર મુજબ ચંપાનગરી, ગત શ્રી મહાવીર સ્વામીના આગમન પાઠમાં જે વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે તે બધું અહીં શહેણ સમજવું. તે પાઠમાં જે છત્રાદિકકે જે તીર્થકર પ્રકૃતિના અતિશયફપ છે- તેમનું ગ્રહણ અહીં કરવું નહિ. તેમજ 'समणे भय महावीरे' पोरे लगवानना नामानी या पालावचिज्जे केसी नाम कुमारसमणे जाइस पन्न". An ancial पातु बडा समायुः "जनः शब्द इति वा" वगैरे, पामा अावेस. ति' A पाच्या १२भा अने वा' श०४ सभुश्य ना ३५मा छ..... ... .. ... .... . ...'तए ण तस्स चित्तस्स इत्यादि, त्या२५७ते, यत्र सारथीन ते महान -: ...... . :.
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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