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________________ सुबोधिनी टीका. देवकृत समवसरणभूमिसमाजानादिकम् व्रजन्तो व्यतिव्रजन्तः यत्रैव सौधर्मः कल्पः यत्रैव मूर्याभं विमानं यत्रैव सुधर्मा सभा यौव सूर्याभो देवः तौव उपागच्छन्ति, उपागम्य मूर्याभं देवं कर नलपरिगृहीनं शिर आवतं मस्तके अञ्जलिं कृत्वा जयेन विजयेन वर्धयन्ति वर्धयित्वा तामाज्ञप्तिकां प्रत्यर्पयन्ति ॥ मू० ७॥ 'तएणं ते आभियोगिया' इत्यादि टीका--ततः-तदनन्तरम् खलु ते-मूर्यामदेवप्रेरिताः, आभियोगिकाः देवाः, श्रमणेन भगवता महावीरेण, एवं-पूर्वोक्त प्रकारं वचनम् उक्ता:-कथिताः, नमस्कार किया. वन्दना नमस्कार करके फिर वे अमण भगवान के पास से और उम आम्रसालवन-चैत्य से बाहर आये ( पडिनिक खमित्ता ताए उक्कियोए जाव वीइवयमाणा २ जेणेव सोहम्मे कप्पे जेणेत्र मुरिया चिमोणे. जेणेव सुहम्मा सभा जेणेत्र मूरियाभे देवे, तेणेव उवागच्छंति) बाहर निकल कर वे. उम उत्कृष्ट यावन दिय देवगति से या चलते हुए जहां सौधर्मकल्प था, जहां सूर्याभ विमान था, जहां सुधर्मा सभा थी, जहां मूर्याभ देव था, वहां पर आये (उवागच्छित्ता मरियाभदेव करयल. परिग्गहिय सिरसावत्त मत्थए अंजलिं कटु जएग विजएण बद्धावेंति. बद्धावित्ता तमाणत्तियं पञ्चप्पिणति) वहां आ करके उन्होंने सूर्याभ देव को दोनों हाथों की अंजली बनाकर और उसे मस्तक पर तीन बार घुमाकर जय विजय शब्दों से बधाया. बधाकर उसकी आज्ञाको पीछे लौटा दिया. अर्थात् आपके कहे अनुसार हमने सब काम कर दिया है-इस प्रकार का वृत्तांत कहा। નમસ્કાર કરીને પછી તેઓ શ્રમણ ભગવાનના પાસેથી અને તે આમ્રસાલવન ત્યથી डा२ मारता २ह्या. (पडि निक्खमित्ता ताए उक्किट्टयाए जाव वीइत्रयमाणा २ जेणेव सोहम्मेकप्पे जेणेव मरियाभे विमाणे, जेणेव मुहम्मासभा, जेणेव मरिया देवे तेणेव उवागच्छति) २ नाणीने तेमा सवे' Gष्ट यायत દિવ્ય દેવગતિથી યાવત્ ચાલતા જ્યાં સૌધર્મ કહ્યું હતું જ્યાં સૂર્યાભવિમાન હતું, नयां सुधा-समा ती या सूर्यालय ता त्या माव्या. (उवागच्छित्ता मृरिया देवं करयलपरिग्गहिय सिरसावत्तं मत्थए अंजलि क? जएण विजएण बद्धाति, बद्धावित्ता तमाणत्तियं पञ्चपिणति) त्यां मावीर तेभए सूयामहेपने બંને હાથની અંજલિ બનાવીને અને તેને મસ્તક ઉપર ત્રણ વખત ફેરવીને જ્ય વિજય શબ્દથી વધામણી આપી. વધાવીને તેમના આદેશ મુજબ બધું કામ પૂરું કરવામાં આવ્યું છે તે પ્રમાણેની ખબર આપી.
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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