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________________ सुत्रेोधिनी टीका. सूर्याभस्यामलकल्पास्थितभगवद्वदनादिकम् .. ४६ - आमलकल्पा नगरी यत्रत्र आम्रशालवनं चैत्यं यत्रैव श्रमणो भगवान् महावीरः तत्रैव उपागच्छन्ति, उपागम्य श्रमणं. भगवन्तं महावीरं त्रिकृत्वः दक्षिण प्रदक्षिणं कुर्वन्ति, कृत्वा वन्दन्ते नमस्यन्ति, वन्दित्वा एवमवादिषुः-वयं खल भदन्त ! सूर्याभस्य देवस्य आभियोगिका देवाः, देवानुप्रियं बन्दामहे नमः स्यामःसत्कुर्मः सम्मानयामः कल्याण मगलं दैवतं चैत्यं पर्युपास्महे ॥सू. ५।। अंबसालवणे चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति) जम्बू द्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र में स्थित आमलकल्पानगरी के आनशालवन चैत्य में विराजमान श्रमग भगवान् महावीर के पास आये, (उपा. गच्छित्ता समण भगवं महावीरं तिक्वुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेंति, करित्ता वदंति. नमसंति) वहाँ आकर के उन्होंने बमग भगावन् महावीर को तीन प्रदक्षिणाएँ की, प्रदक्षिणाएं करके उनको वन्दना की नमस्कार किया (वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी) वन्दना नमस्कार करके फिर उन्होंने इस प्रकार से कहा-(अम्हे णं भंते ! मृरियामरस देवस्स आभियोगिया देवा, देवाणुपियं वंदामो, नमसामों, सम्माणेमो, सकारेमो, कल्लाण मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामो) हे भदन्त । मुरिया भदेव के - आभियोगिक देव हम आप देवानुमिय को वन्दना करते हैं, नमस्कारकरते हैं, आपका सत्कार करते हैं, सन्मान करते हैं, और कल्याणकारक, मंगलस्वरूप एवं ज्ञान स्वरूप आपदेव की सेवा करते हैं। समणे भगवं महाबोरे तेणेव उवांगच्छति) alपना मत देत्रमा अवस्थित આમલકપા નગરીની આમ્રપાલવન ચર્યામાં વિરાજમાન શ્રમણ ભગવાન મહાવીરની पासे माव्या. (उवागच्छित्ता समण भगवं महावीर तिक्खुत्तो . आयाहिण पयाहिण करेंति, करित्ता वंदति नमसंति) त्यांने तेभरे श्रमायु सस વાન મહાવીરની ત્રણ વખત પ્રદક્ષિણા કરી. પ્રદક્ષિણા કરીને તેમણે વન્દન નમસ્કાર ४ा. (वदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी) पहना मने नमा२ ४ीन तेभले भा प्रमाणे इयु (अम्हेणं भंते ! मरियाभस्स देवस्स आभियोगियार, देवोणुप्पियं वदामो, नमसामो, सकारेमो, सम्माणेमो, कल्लाण मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामो) महत! सूरियाल वना लियो । अमे આપને વંદન કરીએ છીએ. નમસ્કાર કરીએ છીએ આપને સત્કાર કરીએ છીએ, સન્માન કરીયે છીએ. અને કલ્યાણ કારક, મંગળ સ્વરૂપ અને જ્ઞાન સ્વરૂપ આપ દેવની સેવા કરીયે છીએ.
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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