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________________ Fic... - - - - - .. . : 44.बाव सुबोधिनी टीका' सू. ८५ सूर्याभस्य इन्द्राभिषेकवर्ण नम्......... - माभासानि तीर्थानि तत्रैव उपागच्छन्ति, उपागत्य तीर्थोदक गृहन्ति गृहीत्वा तीर्थमृत्तिको गृह्णन्ति, गृहीत्वा यत्रैव गङ्गा-सिन्धु-रक्ता रत्तवत्यो महानधस्तत्रैवं उपागच्छ. न्ति, उपागत्य सलिलोदक गृह्णन्ति गृहीत्वा उभयतः कूलमृत्तिका गृह्णन्ति, गृहीत्वा यत्रैव क्षुल्लहिमवच्छिखरिवर्षधरपर्वतास्तत्रव उपागच्छन्ति, उपांगत्य दकं गृह्णन्ति, सर्वतु वराणि सर्वपुष्पाणि सर्वगन्धान सर्वोपधिसिद्धार्थकान गृह्णन्ति, गृहीत्वा यत्रय तित्याइ तेणेव उवागच्छ ति). लेकर फिर वे जहां पर समयक्षेत्र-ढाईद्वीपः था, जहां भरत ऐरवत क्षेत्र थे, जहाँ मागधवरदाम प्रभासतीर्थ थे वहां पर आये. (उवागच्छित्ता तित्थोदग' गेण्ह ति, गिण्हित्ता तित्थमंटिय गेण्हति, गेण्डित्ता जेणेव गगा-सिन्धु-रत्ता-रत्तवईओ महानईओ तेणेव उवागच्छति) वहां आकर के उन्होंने तीर्थोदक लिया-उसे लेकर फिर उन्होंने वहां की मृत्तिका लेकर फिर वे जहां गंगा सिन्धु, रक्ता, और रक्तवती महानदियां थी वहां पर आये (उबांगच्छित्ता संलिलोदग गेण्हति, गेण्हिता-उभओं कूलमटिय गेह ति, "गेण्डित्ता जेणेच चुल्लहिमवतसिहरिवासहरपव्यया तेणेव उवागच्छति) वहाँ आकरके उन्होंने सलिलोदकं भरासलिलोदक भरकर-उसे भरकर . फिर उन्होंने वहांसे दोनों तटों की मृत्तिका को लिया और लेकर फिर वे जहां क्षुल्लहिमवान् वर्षधर पर्वत और शिखरि वर्षधर पर्वत थे वहां पर आये (उवागच्छित्ता दगं गेण्ह. ति) वहाँ आकरके उन्होंने वहां से जलं भरा (सव्वतूयरे सव्वपुप्फे सव्वगंधे सब्बों खेत्ते जेणेव भरहेस्वयाइ वासाइ जेणेव मागहवरदामाभासाइ तित्थाई.... तेणेब उवागच्छति) धन पछी ते। यो समयक्षेत्र दीप तi, arti ad औ२वत क्षेत्र तु, या भावहाभ प्रालास तात त्या भाव्या. (वांगच्छित्ता तित्थोदंग गेण्हति गेण्डित्ताः तित्थमटिय गेण्हति. गेण्हिता जेणेव गंगा-सिन्धु-रत्ता रत्तवईओ महानईओ तेणेव उवागच्छति) त्या पडाचीन તેમણે તીર્થોદક લીધું. તીર્થોદક લઈને પછી તેમણે ત્યાંની મુત્તિકા લીધી. મૃત્તિકા दान तेय .या सिन्धु, २४ता भने २४तपती. भानही! ती त्या व्या. (उवागच्छित्ता सलिलोदगं गेहति, गेण्हिता. उभओ, कूलमटियं गेहति, रोहिताः जेणेवः चुल्लहिमवतसिहरिवासहरपव्यया । तेणेव उवागच्छति) स्थावान तेभाले सnिey , सतिशन भए त्यांचा मानना એની માટી લીધી અને લઈને પછી તે જયાં સુલ હિમવાને વર્ષધર પર્વત અને शंभर वर्षधर यति ता त्या गया, (उवागच्छित्ता, दुर्ग, गेहति) त्या पायाने ते त्यांची पाली म. (सव्वतूयरे सव्वपुप्फे सवंगधे सम्वोसहिसिद्धथए - -- .. . .
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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