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________________ राजश्रीयसूत्रे जलावगाहं जलमज्जनं करोति, कृत्वा जलक्रीडां करोति, कृत्वा जलाभिषेकं करोति कृत्वा आचान्तः चोक्षः परमशुचिभूतो दात प्रत्यवतरति प्रत्यचतीर्य यन्त्र अभिषेकसभा तत्रेव उपागच्छति, उपागत्य अभिषेकसभाम् अनुपदक्षिणीकुर्वन् अनुपदक्षिणीकुर्वन, पौरस्त्येन द्वारेण अनुप्रविशति, अनुप्रविश्य यत्रेव सिंहासनं तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य सिंहासनवरगतः पौररस्त्याभिवः सन्निपणः ॥ म्रु० ८४ ॥ ५६८ किया (पच्चो महित्ता जलावगाहं जलसजण करें ह) प्रवेशकर उसने उसमें जलावगाहन किया और स्नान किया (करिता जलकिडुं करेह) स्नान करके फिर उसने जलक्रीडा की - (करिता जलाभिसे करेड़ करिता आयंते चोक्खे परममूईए : हरयाओ पचोत्तर) जलक्रीडा करके फिर उसने जलसे अभिषेक किया जलसे अभिषेक करके फिर उसने आचमन किया-अर्थात् शरीर के नौ द्वारों का अतिस्वच्छ जल से प्रक्षालन किया. इस तरह पवित्र और परमशुचि भूत हुआ वह हूद से बाहर निकला (पञ्चोत्तरित्ता जेणेव अभियसभा तेणेव उवागच्छ) बाहर निकलकर फिर वह उस ओर चला कि जहां पर अभिषेक सभा थी. (रवागच्छित्ता अभिसेयसभ अणुपयाहिणीकरेमाणे २ पुरथिमि लेणं दारेणं अणुपविस ) यहां आकर वह अभिषेकसभा की चार २ प्रदक्षिणा करता हुआ उसमें पूर्वदिग्वर्ती द्वार से प्रविष्ट हुआ (अणुपविसित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छड़, उवागच्छित्ता सीहाणवरगए पुरत्याभिमुहे संनिसणे) प्रविष्ट होकर फिर वह वहां गया अत. (पच्चोरुहित्ता जलावगाहं जलमज्जण करेइ) उत्तरीने तेथे तेमां साव ગાઢુન કરીને સ્નાન કર્યું. करिता जलविड : करेइ) स्नान इरीने 'च्छी ते डीडा उरी. (करिता जलाभिसेय' करेइ करिना आयते चोक्खे परमसुईभू हरयाओ पचोत्तर) ४|| रीने च्छा ते ४थी अभिषे ये. જળથી અભિષક કરીને પછી તેણે આચમન કર્યું" એટલે કે શરીરના નવ દ્વારાનુ અતિ સ્વચ્છ જળથી પ્રક્ષાલન કર્યું" આ પ્રમાણે પવિત્ર અને પરમ શુચિભૂત થયેલા ते हृदभांथी मडार नीडज्यो, (पच्चोत्तरिक्षा जेणेत्र अभिसेयसमा तेणेव उवागच्छई) महार नीउणीने ते अभिषेङ सला तर खाना थयो (उवागच्छित्ता अभिसेय सभ अणुपयाहिणी करेमाणे २ पुरात्थिमिल्लेण दारेण अणुपविसिइ) त्यां પહેાંચીને તે અભિષેકસભાની વાર વાર પ્રદક્ષિણા કરતા પૂદિશા તરફના દ્વારથી तेभां प्रविष्ट थ्यो. (अणुपविसिता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उबाग
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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