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________________ ५४६ श्रीसू मणिरत्नखचितचित्रदण्डाः सुक्ष्मराजतदीर्घ बालाः शङ्खाङ्ककुन्ददकरजोऽमृतमथितफेनपुञ्जसन्निकाशाः धवलाश्वामराः सलीलं धारयन्त्यो धारयन्त्यस्तिष्ठन्ति । तासां खलु जिनमतिमानां पुरतो हे द्वे नागप्रतिमे यक्षपतिमे भूतप्रतिमे कुण्डधारमति सर्वरत्नमय अच्छे याचतिष्ठतः। तासां खलु जिनप्रतिमानां पुरतः अष्टशत' घण्टानाम्, अनुशतं चन्दनकलशानाम्, अष्टशतं भृङ्गाराणाम्, एवम् आद afai स्थालानां पात्रीणां सुप्रतिष्ठानां मनोगुलिकानां वातकरकाणां चित्रकराणां धारण करनेवाली प्रतिमाएँ कही गई हैं ( ताओ णं चामरवारपतिमाओ चंदष्पचयर वेरुलिय नानामणिरयणस्वचियचित्तदंडाओ सुमरययदीवालाओ संखं ककुं ददगर अमय महिय फेणपुं जसं निकासाओ धवलायो चामराओ सलील धारेमाणीओ (चिति) ये चामर धारण करनेवाली मतिमाएँ धवल चामरों को उनके ऊपर ढोरती हुई खडी हैं इन चामरों के दण्ड चन्द्रकान्तमणि, वज्रमणि, वैडूर्यरत्न, तथा इनके अतिरिक्त और भी अनेक प्रकार के मणिरत्नों से खचित हैं और इसीसे ये अनेकरूपवाले प्रतीत होते हैं इन चामरों के जो बाल है वे सूक्ष्म हैं, एवं बहुतलम्बे हैं (तासि णं' जिगपडिमाण' पुरओ दो दो नागपडिमाओ जक्खपडिमाओ, भूयपडिमाओ कुंडधारपडिमाओ सन्वरयणासईयो अच्छाओ जाव (चिति) इन जिनमतिमाओं के आगे दो दो नागमतिमाए यक्षप्रतिमाएं एवं सूतमतिमाएँ कुंडधारक प्रतिमाएं खडी हुई हैं ये सब नागादिप्र तिमाए सर्वात्मनारत्नमय हैं, निर्मल हैं यावत् प्रतिरूप हैं (तासि णं जिणपडिमाण पुरश्री अयं घंटा अट्ठसय चंदणकलसाण, अट्टसयं भिंगाराण', एवं आसाण श्रभश्धारण डरनारी प्रतिभागी हवाय है. ( ताओ णं चामरघारपडिमाओ चंदष्पहवयरवेकलियनानामणिरयणख चियचित्तद' डाओ सुमरीवालांभो सं'ख' कक्कु ददगर अमयमहियफेणपुंजस निकासाओ धवलाओ चामराओ, सलोल' 'वारेमाणीओ२ चिट्ठति ) मे ग्राभर धारण डरनारी प्रतिभाओ સફેદ ચામરા ઢાળતી ઉભી છે, એ ચામરાની દાંડીએ ચંદ્રકાંતમણિ, વજ્રમણિ, વેડૂ રત્ન, તેમજ ખીજા પણ ઘણાં મણિરત્નાથી જડેલી છે. એથી એએ અનેક રૂપાથી શૅાભિત જણાય છે. એ ચામરાનાવાળા સ્મૃતીવ સૂક્ષ્મ (જીણા) છે, પાતળા છે અને અહુ જ લાંખા છે. (तासिणं जिणपडिमाणं पुरओ दो दो नागपडिमाओ जक्खपडिमाओ भूयपडिमाओ, कुण्डधारपरिमाओ सन्चरयणामईओ अच्छाओं जाव चिह्न ति ) એજિન પ્રતિમાએની સામે ખખ્ખુ નાગપ્રતિમાએ, યક્ષ પ્રતિમા અને ભૂત પ્રતિમા કુંડધારપ્રતિમાઓ ઉભી છે, આ મધી નાગ વગેરેની પ્રતિમાએ સર્વાત્મના રત્નમય છે. निर्माण यावत् प्रतिज्ञयं छे (तासिणं जिणपडिमाणं पुरओ अट्टमय 7 :
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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