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________________ taar.७४ स्तूपवर्णनम् ५११ पुक्खरिणी प्रज्ञप्ता । ताः खलु नन्दाः पुष्करिण्यः एक योजनशतम् आयामेन पञ्चाशद्योजनानि विष्कम्भेण, दश योजनानि उद्बधेन, अच्छा यावद् वर्णकः, अप्येकिका प्रकृत्या उदकर सेन प्रज्ञताः । प्रत्यका प्रत्येक पद्मवेदिकापरिक्षिप्ता, प्रत्येक प्रत्येक वनखण्डपरिक्षिता । तासां खलु नन्दानां पुष्करिणीनां त्रिदिशि त्रिसोपानप्रतिरूपकाणि प्रज्ञप्तानि । त्रिसोपानप्रतिरूपकाणां वर्णकः तोरणानि ध्वजाः छत्रातिच्छत्राणि ॥०७४ || : ध्वजाएं प्रासादीय यावत् प्रतिरूप हैं. (तेसि ण महिंदज्झयाण उवरि श्र मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता) इन महेन्द्रध्वजों के ऊपर आठ मंगलक हैं, ध्वजाए हैं और छत्रातिच्छत्र हैं. (ते सिणं मज्झिमाणं पुरओ पत्तयं पत्तेयं नंदा क्खरिणी पण्णत्ता) उन महेन्द्रध्वजों के आगे एक एक नन्दाः पुष्करिणी है. (ता ओ णं णंदाओ पुक्खरिणीओ एगं जोयणसये आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं, दसजोयणा विक्खभेणं, अच्छाओ जाव वष्णओ अप्पेगइयाओ पगए उदगरसेण पण्णत्ताओ ) ये नन्दा पुष्करिणिय आयाम की अपेक्षा एक सौ योजन हैं, तथा विस्तार की अपेक्षा ५०० योजन की बडी स्वच्छ हैं, इनमें से कितनेक नन्दा पुष्करिणियों में स्वभावतः पानी ही भरा है ( पत्ते २ उमवर वेइवा परिक्खित्ता पत्तेयं २ वणसंडपरिक्खित्ता) तथा प्रत्येक नन्दापुष्करिणी पद्मवरवेदिका से परिवेष्टित हैं और वनड से घिरी हुई हैं (तासि णं णंदाण पुक्खरिणीण तिदिसि तिसोवाणपडिरुवगा पण इन दापुष्करणियों की तौन दिशाओं में श्रेष्ठ तीन सोपानों की या प्रभाऐ या मधी वन्लग्यो आसाहीय यावत् प्रति३ छे. (तेसिंण महिंदझयाण वरि अगला झया छत्ता इच्छत्ता) : महेन्द्रध्वननी उपर आठ या भगाओ। छ, ध्वन्लमो छ भने छत्रातिच्छ्त्रो छे. (तेसि णं महिंदज्झयाण पुरओ पत्तय पत्तेय नंदा पुक्खरिणी पण्णत्ता) से महेन्द्रध्वनेनी साभेो मे नहायुष्ठ शिशुी छे. (ताओ णं णंदाओ पुत्रखरिणीओ एवं जोयणस्य आयामेण पण्णासं जोयणाइ विक्ख भेणं, दल जोयणाई, विक्खंभेण अच्छाओं जाव वण्णओ अप्पेगइयाओ पगईए उद्गर सेण पण्णत्ताओ मे नहायुष्ण्टुरिणीभ्यो मायाभनी અપેક્ષાએ એકસેસ ચેાજનની છે. તેમજ વિસ્તારની અપેક્ષાએ ૫૦૦ ચેાજનની છે, એકદમ સ્વચ્છ છે, એમાંથી કેટલીક ના પુષ્કરિણીઓમાં સ્વભાવિકરીતે પાણી लरेलु ४ २ छ. (पत्तेयं २ पउमवर वेइयापरिक्खित्ता पत्तय२ वणसंडपरिविखत्ता) ते हरे हरे नहायुष्ड रिडी पद्मवश्वेहिअथी परिवेष्टित छ भने वनभडथी वीटजायेसी छे. (तासि णं णंदाणं पुक्खरिणी ण तिदिसिं तिसोवाणपडिवगा पण्णत्ता) मा नहायुण्डरिणीमोनी न दिशाभोभां त्रशु उत्तम सोपान 3 •
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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