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________________ ५०० राजप्रश्नीयसूत्रे 3 3 खलु मणिपीठिकाः अष्टयोजनानि आयामविष्कम्भेण चत्वारि योजनानि बाहल्येन सर्वमणिमय्यः श्रच्छा यावत् प्रतिरूपाः । तासां खलु मणिपीठि कानामुपरि प्रत्येक प्रत्येक सिंहासनं प्रज्ञप्तम् । सिंहासनवर्णकः सपरिवारः । तेषां खलु प्रेक्षागृह मण्डपानाम् उपरि अष्टाष्टमङ्गलकानि, ध्वजाः, छत्रातिच्छत्राणि । तेषां खलु प्रेक्षागृह मण्डपानां पुरतः प्रत्येक प्रत्येकं मणिपीठिका प्रज्ञप्ता । ताः खलु जोगपीठिका: पोडश योजनानि आयामविष्कम्भेग, अट में प्रत्येक प्रत्येक में मणिपीठिका कही गई हैं । (ताओणं मणिपेठियाओ अजोयणाई आयामविक्ख भेण चत्तारि जोयगाइ बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जान पडिनाओ ) ये सब मणिपीठिकाएं विष्कंभ की अपेक्षा से ग्राठ योजनकी कही गई हैं. तथा मोटाई की अपेक्षा चार योजन की कही गई हैं, - ये सब सर्वथा रत्नमय हैं, अच्छ-निर्मल हैं, यावत् (तासि ण' मणिपेढियाण' उवरि पश्तेयं पत्तेयं सीहासणे पण्णत्ते) इनके ऊपर - प्रत्येक मणिपीठिका पर एकर सिंहासन कहा गया हैं । (सीहासणवण्णभ सपरिवारो) यहां पर सपरिवार सिंहासन का वर्णन करना चाहिये (तेसि णं पेच्छाघरमंडवाण उवरि श्रम गलगा झया छत्ताइच्छत्ता) उस प्रेक्षागृहमंडपों के ऊपर आठ र मंगलक तथा ध्वजाएं और छत्रातिच्छत्र कहे गये हैं । (तेसिंग पेच्छाघर मण्डवार्ण पुरओ प पत्तेयं मणिपेढिया पण्णत्ता) उन प्रेक्षागृहमंडपों के सामने प्रत्येकमण्डप के आगे मणिपीठिका - एक एक मणिपीठिका कही गई है (ताओ गं मणिपेढि - मणिपेढ़िया पण्णत्ता) ते वन्नरत्नना अक्षयाटोना बहु मध्यहेशलागभां हरे हरेश्भां भशिचीठि। हेवामां मावी छे. (ताओ णं मणिपेढियाओ अड्डजोयणाई आयामविक्खंभेणं चत्तारि जोयणाई वाहल्लेणं, सन्त्रमणिमईओ अच्छाओं जात्र पडित्राओ) मा गधी भशिचीाियो आयाम अने विष्णुं सनी अपेक्षा माठ योन જેટલી કહેવાય છે. તેમજ મેાટાઇની અપેક્ષાએ ચાર ચેાજન જેટલી કહેવાય છે. या गधी सर्वथा रत्नभय छे, छछे, निर्माण छे, यावत् अतिश्य छे. (तासि णं मणिपेढयाणं वारं पत्तेयं पत्यं सोहासणे पण्णत्ते) भनी उपर-ढरे हरे! भलि पीठिडा उपर से मे सिंहासन हवाय छे. (सीहासणवण्णओ सपरिवारो) गहीं सपरिवार सिहासननुं वर्णन उखु लेहये. (तेसि णं पेच्छाघर मंडवाण उवरि अट्टह मंगलगा झयां छत्ताइच्छत्ता) ते प्रेक्षागृहभउयोनी उपर भाई भाई भंगसी तथा ध्वलगो भने छत्रातिच्छत्रो हेवाय छे. (तेसि णं पेच्छाघरमंडवाण पुरओ पत्तेयं पत्तेयं मणिपेढिया पण्णत्ता) ते प्रेक्षागृह भडयोनी साभे हरे हरेड भौंडपनी साभे भणि॒िपीठिडा-१ मे, भणिपीडिा उडेवाय . ( ताओ ण मणिपेढि - "
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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