SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 508
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४९४ राजप्रश्नीयसूत्रे ग्राणि यावद् वनमालाः। तेषां खलु द्वागगाम् उपरि अष्टाः मङ्गलकानि ध्वजाः छत्रातिच्छत्राणि । तेपां ग्वल द्वागणां पुरतः प्रत्येक प्रत्येकं मुखमण्डपः प्रजप्तः । ते खलु मुखमण्डाः एकं याननशनम् अावामेन, पञ्चा. शद योजनानि विष्करण, सातिरेकाणि पोडशयोजनानि ऊध्वमुच्चत्वेन वर्णकः सभायाः सदृशः। तेषां खलु मुखमण्डपानां त्रिदिशि त्रीणि द्वाराणि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा. चाले हैं. तावडय चेव पयेसेण) तथा आ० योजन के ही प्रवेशवाले हैं. (सेया वरकणगभियागा जाव वणमालाओ) ये सब दरवाजे श्वेत है, श्रेष्ठमूत्रण की शिखर वाले हैं ईहामृग इत्यादि द्वार वर्णन से लेकर वनमालावर्णन तक का सब वर्णनपाठ यहीं लिया गया है. ऐसा जानना चाहिये. (तेलि ण दाराणं उचरि अहमंगला झया छत्ताइच्छत्ता) उन द्वारों के ऊपर आठ आठ स्वस्तिक आदि मंगलक है. ध्वजाए हैं छत्रातिछत्र है (तेसि ण दाराण पुरओ पोय पोयं मुहमंडवे पण्णचे) उन द्वारों के आगे एक एक मुखमण्डप कहा गया है (तेणं मुहम डग एग जोयणसय आयामेण, पणासं जोयणाई विक्खंभेण लाइरेगा सोलसजोयणाई उहुँ उच्चशेणं चण्णओ सभाए सरिसो)ये मुखमंडप आयाम (चौडाई) में ५० योजन के हैं, कुछ आधिक १६ योजन की उंचाई है बाकी का इनका वर्णन मुधर्मासभा के जैसा है। (तेसि णं मुहमंडवाणं तिदि सिं तओ दारा, पण्णत्ता, ते जहापुरथिमेणं, दाहिणेणं, उत्तरेण) उन मुख मण्डपों की तीन दिशाओं में पवेसेणं) तथा मा8 योजना प्रवेशाछ. (सेया वरकणगथूभियागा जात्र वणमालाओ) को गधा ४२वानो। स छ, उत्तम सुवर्णा शिमशा छ, 'ईहामृग' वगैरे द्वा२ qथी भांडीन 'वनमाला' पनि सुधातु मधु वर्णन मी हा प्रवामां माव्यु छ. (तेसि णदाराण उवरि अट्ट मगला झया छत्ताइच्छता) को वारानी ५२ २18 मा8 स्वस्ति वगैरे भाग छ, वन-या छ, भने छाति-छत्र छ. (तेसिण दाराण पुरओ पत्तयं पत्तेयं मुहमंडवे प्राणो) એ હારની સામે દરેકે દરેક કારની આગળ એક એક મુખમંડપ કહેવાય છે. (तेण मुहमंडवा एग जोयणसयं आयामेण, पण्णासं जोयणाइ विक्खंभेग साइरेगाई सोलस जोयण उर्ल्ड उच्चशेण वणो सभाए सरिओ) એ મુખમંડપ આયામ (લંબાઈ) માં ૧ જન જેટલા છે અને વિખંભ (પહોળાઈ) માં ૫૦ એજન જેટલા છે. ૧૬ જન કરતાં સહેજ વધારે જેટલી એમની ઊંચાઈ छ. समानुपाडीनु पनि सुधासमा र छ. (तेसि ण मुहम डवाण तिदि. सिं तो दारा पण्णत्ता, त जहा पुरथिमेण, दाहिणेण उत्तरेण) से भुभ
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy