SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 507
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुबोधिनी टीका सू. ७२ सुधर्मसभादि वर्णनम् द्वासप्तति योजनानि उर्ध्वमुच्चत्वेन, अनेक स्तम्भशतलन्निविष्टा अभ्युद्गतसुकृतवज्रवेदिका तोरणवररचितशालभन्जिका यावत् अप्सरोगणसङ्घविप्रकीर्णा प्रासादीया ४।। ___सभायां खलु सुधर्मायां त्रिदिशि त्रीणि द्वाराणि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा पौरत्त्ये दक्षिणे उत्तरे। तानि खलु द्वाराणि पोडश योजनानि उर्ध्वमुच्चत्वेन अष्ट योजनानि विष्कम्भेण तावन्त्येव प्रवेशेन, श्वेतानि बरकनकस्तूपिका नाम की सभा कही गई है (एग जोयणसय आयामेण, पण्णास जोयणाइविक्खंभेणं, बावत्तरि जोयणाः उड़ उच्चत्तंग, अणेगवं मसयसंनिविष्ठा अब्भु. ग्गयसुकयवयरवेझ्या तोरणावररइयसालभंजिया जान अच्छरगणसंघविष्पकिण्णा पासाईया४) यह सभा १ौ योजनकी लम्बी है एवं ५० योजन की विस्तार वाली है. ७२ योजन की ऊंचाई है. अनेक सौ खंभों के ऊपर यह सनिविष्ट है, इसमें अत्युन्नत एवं अच्छी तरह निष्पादित की गई सुन्दर बेदिकाएं, तोरण एवं शालभंजिकाएं बनी हुई है. यावत् यह अप्स. राओं के समूह से व्याप्त है, प्रासादीय४. (सभाए णं सुहम्माए तिदिसिं तओ दारा पणत्ता) इस सुधर्मा सभा की तीनदिशाओं में तीन दरवाजे हैं (त' जहा-पुरस्थिमेण, दाहिणेणं उत्तरेणं) जो पूर्व दिशा में दक्षिण दिशा में और उत्तरदिशा में हैं (तेणं दारा सोलस जोयणाईउड उच्चरोणं) ये दरवाजे १६ योजन के ऊंचे हैं (अट्ठजोयगाई विक्खंभेण) आठ योजन के विस्तार ४ठेवाय छ. (एगंजोयण सयं आयामेणं, पण्णास जोयणाइ विखंभेण', वायत्तरि, जोयणाइ उड' उच्चरोण अणेगख भसयसंनिविष्ठा अन्नग्मयनुकय वयरवेइया तोरणवररइयसालभंजिया जाव अच्छरगणसंघविप्पकिण्णा साईया ४) । समा से योनक्षी eioी छ भने ५० थान की વિસ્તારવાળી છે. ૭૨ જન જેટલી એની ઊંચાઈ છે. ઘણું સેંકડ થાંભલાઓ ઉપર આ સંનિવિષ્ટ છે. આમાં અમ્યુન્નત અને સારી રીતે નિષ્પાદિત કરવામાં આવેલી સુંદર વેદિકાઓ છે. તોરણ તેમજ શાલભંજિકાઓ બનેલી છે યાવત્ આ અપ્સરાઓના સમૂહોથી व्यास छ. प्रासाहीय छ ४. (मभाए णमुहम्माए तिदिसिं तओ दारा पण्णता) मा सुधर्मा समानी हिशामाभा ज ४२वासमा छ. (त' जहा-पुरस्थिमेण', दाहिणेणं.उत्तरेण) पूर्व दिशामां, दक्षिण दिशामा अनेत्त हिशामांछ. (तेणदारासो. लस जोयणाई उङ्क उच्चत्तेण) ये ४२वा १६ यो रेसा या छ, (अट्ट जोयणाई विक्खंभेण) 18 योनटको भनी विस्तार छ. (तावडयं चेव.
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy