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________________ - ३८६ স্ত্রী रत्नकरण्डको मज्ञप्तौ, स यथानामकः रामः चातुरन चक्रवर्तिनः चित्रः रन्नकरण्डकः वैडूर्यमणिस्फटिकपटलमत्यवम्त: स्त्रया प्रभया तान् प्रदेशान सर्वतः समन्ताद अवभामयति उद्योतयति तापयति प्रभामयति । एवमेव तेऽपि चित्राः रत्नकरण्डकाः स्वया प्रभया तान प्रदेशान सर्वतः समन्तान् अबभासयन्ति उद्योतयन्ति तापयन्ति प्रभामर्यान्त । तेषां ग्वट नोरणानां पुरतः छीकों में बंधे हुए, एवं सफेद मूत्रबाले छीकों में बंधे हुप अनेक शान करक-फलश विशेष रखे हुए. कहे गये हैं । (सम्ये बेलियमया अच्छा जाव पडिस्वा) ये सब बात करक चेहर्यमय त निर्मल । यावत प्रतिरूप कहे गये हैं। (तसिंणं तोरणाणं पुरओं दो दो चिना रयण करंडगा पणत्ता) उन तोरणों के आगे दो २ अगुन रत्नकरण्डक कहे गये हैं। (से जहानामा रन्नो चाउरंतचकवहिस्स चित्ते रयण करंडए वेमलियमगिफलिपडलपचोयडे साए पहाए ते पएसे सचओ ममता ओभासइ उन्नोवेड तावेड पभासेइ) जैसे-पखंडाधिपति राजा का चित्र-यदभुत रत्नकरण्डक बंदर्यमणि ॥ स्फटिकमणि से आच्छादित हुश्रा अपनी प्रभा से अपने पामके प्रदेशों को चारों दिशाओं में तथा चारों विदिशाओं में प्रकाशित करता है, उद्योतित करता है, तापित करता है, पभासित करता है (एवमेव ने वि. चित्ता रयणकरंडगा साए पभाए ते पए से सचओ समंता ओभामंति, उजोति, तावेंति पभासें ति) इसी तरह से वे तोरणावस्थित रत्नकरण्डक વામાં આવેલા પીળા દેરાવાળા અને શીકાઓમાં બાંધવામાં આવેલા સફેદ દેરાવાળા धार। पात४२४-४६० विशे५ भूsai उपाय छ. (सव्वे वेगलियमया अच्छा जाव पडिरूवा) मा अधा पात:२४-४ विशेष- भय मने निण यावत प्रति३५ કહેવામાં આવ્યા છે. (तेसिंणं तोरणा ण पुरओ दो दो चित्ता रयणकरंडगा पण्णना) ते तर. होनी सामे ये महाभुत २त्न४२४ घडवाय छ. ( से जहानामए रन्नो चाउ. रंतचक्काटिस्स चिो ग्यणकरंडए वेमलियमणिफलिहपडलपचोयटे माए पहाए ते पएसे सम्वो समंता ओभामह उज्जोवेद तावेद पभासेड) છ ખંડના અધિપતિ રાજાની અદ્દભુત રત્નકરંડક દૌડૂર્યમણિ અને સ્ફટિકમણિથી - આચ્છાદિત થયેલી છબી પિતાની પ્રભાથી આસપાસના પ્રદેશને ચારે તરફ દિશાઓમાં તેમજ વિદિશિઓમાં પ્રકાશિત કરે છે. ઉદ્યોતિત કરે છે, તાપિત કરે છે. પ્રભાસિત કહે છે. (एवमेव ते वि चित्ता रयणकरडगासाए पभाए ते पएसे सन्यो समंता ओभा. ___ संति, उज्जोवें ति, तावेंति पभासे ति) तेभन त तान ? सामे भूदा २त्न
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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