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________________ ३५६ राजप्रश्नीयसूत्रे कवरपादपसमुत्थिता वामहस्तगृहीतानशालाः इषदक्षिकटाक्षचेष्टितः लूपयन्त्य इव चक्षुर्लोकनश्लेपैश्च अन्योऽन्यं खिधन्य इव पृथिवीपरिणामा; शाश्वतभाव मुपगताः चन्द्राऽऽननाः चन्द्रविलासिन्यः चन्द्रार्धसमललाटाः चन्द्राधिकसौम्यदर्शनाः उरका इव उद्घोतमानाः विद्युद्धनमरीचियदीप्यमानते जो. . धिकतरसंनिकाशाः शङ्गारागार चारुवेपाः प्रामादीयाः यावद तिष्ठन्ति ।म.५६।। अग्लोगवर........समुट्टियाओ) श्रेष्ठ अशोकवृक्ष से मानो अभी ही उत्पन्न हुई हैं ऐसी ऐसी प्रतीत होने वाली, (वामहत्यग........मालामा) वामहस्त से जिन्होंने अशोकक्ष की अग्रशाखाको पकड रकाबी है एमी (ईसि अद्धाच्छिकडक्ख.......चिहिएहि लूममाणीयोविव) जिस कटाक्ष में आंखें आधी मिच गई हैं ऐसे कटाक्षोंवाली, अर्थात् तिर्यग्ररूप से कटाक्षों का विक्षेप करनेवाली, अत: इस प्रकार की चेष्टायों द्वारा देवों के मन को पीडित सी करनेवाली हो रही हो मानो ऐसी, (चकावुल्लोयणले से. हि य अन्नमन्न खिजमाणी भो विव) नेत्रावलोकनसंश्लेपगों द्वारा आपण में खेद को प्राप्त होती हो न मानों ऐसी, (पुढविपरिणामाओ सोमय. भावमुवगयाओ चंदागणाओ चंदमोमदग्णाओ उवाविव उज्जोवेमाणाओ) पृथिवी के परिणाम स्वरूप ऐसी, विमान की तरफ निन्य ऐनी, चन्द्र जैसे मुखो वाली ऐस चन्द्र जैसे विलास स्वभाव वाली सी, अर्धविभक्तचन्द्र के तुल्य ललाटवाली ऐसी, चन्द्र से भी अधिक आङ्कदिकारक दर्शनवाली ऐसी. तथा उल्का--(प्रकाश पुंज जैसी चमकती हुई) की तरह चमकने वाली (इसिं असीगवर........समुट्टियात्रो) श्रेष्ठ मी वृक्षथी तत पन्न थयेली डाय तेवी (नामहत्थंग्ग........सालायो) असा हाथीभो म वृक्षनी मशामा आदी राभा छ तेवी (ईमि अद्धान्छिकडवख........चिट्टिएहि लममाणीओविव ) क्षमा मांगी मा य त टासावाणी थेट ति4) રૂપથી કટાક્ષો ફેંકનારી, એથી એવી કામ ચેષ્ટાઓથી જાણે કે દેના મનને પીડિત ४२ती डाय तवी (चक्खुल्लोयणले सेहिय अन्नमन खिज्जमाणीओ विव) नेत्रावटोtxt सरखेपा 43 ५२२५२ मेह प्राप्त थयेसी (पुढवि परिणामाओं सासयभावभुवगयाओ चंदाणणाओ चंदसोमदंसाणाओ उक्काविवउजोवेमाणाओ)पृथिवीना परिणाम २१३५२वी, या विभान रेवी, युनत यन्द्रा મુખવાળી, ચન્દ્ર જેવા વિલાસી સ્વભાવવાળી, અર્ધ વિભકત ચંદ્ર જેવા લલાટ વાળી ચદ્ર ४२ता पपधुमाला शनावाणी तभor Sex २वी ४ थी यमती, विज्जू
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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