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________________ % 3D सुबोधिनी टीका. सू. ५६ सूर्याभविमानवर्णनम् ३५२५ स्थिताः सुप्रतिष्ठिताः स्वलनानानाविधरागवलनाः नानामाल्यपिनद्धाः मुष्टिग्राह्यसुमध्याः आमेलकयमलयुगलवृताभ्युन्नतपीनरचितसंस्थितपीवरपयोधराः रक्ताऽपाङ्गाः असितकेश्यः मृदुविशद प्रशस्तलक्षणसंवेल्लिताग्रशिरोजाः इषद् अशो. ट्ठियाओ सुपहियाओं सुअलकियाओ णाणाविहरागवसणाओ णाणामल्लपिणद्धाओं मुहिगिज्झसुमज्झाओ) ये सब शालभंजिकाएं वहां क्रीडा करती हुई दिखलाई गई हैं. ये वहां अच्छी तरह से प्रतिष्ठित की हुई प्रकट की गई हैं. सब प्रकार के श्रृङ्गारों से उन्हें अलंकृत किया गया है तथा इन्होंने जो वस्त्र पहिरे हैं वे अनेक प्रकार के रंगों से रंग हुए पहिरे हैं अनेक प्रकार की मालाए भी इन्होंने पहिर रक्खी हैं। इनका मध्यभाग अर्थात कटिप्रदेश इतना पतला-कृश कहा गया है कि वह एक मुहि में समा जावे ऐसा अतिकृश प्रकट किया गया है (आमेरगजमलजुगलबटियअभुन्नय पीण रइय संठियपीवर मोहराओ) एक साथ एक ही रूप में बनाये हुए जो दो मुकुट उन मुकुटों के समान गोलाकार वाले, तथा अतितुङ्ग-एवं परिपुष्ट आकार से युक्त ऐसे दोनों स्थूल स्ननों वाली तथा (रत्ताने गाभो, असिय केसिओ, मिउविसयपसत्थलक्खण संवेलियग्गसिरयाओ) रक्त नेत्रान्तभाग वाली, कृष्णवर्णवाले केशवाली, मृदु-कोमल, विशद-निर्मल, प्रश-- स्तलक्षणोंवाले-परस्पर संश्लेषणरूप शोभनलक्षणों, घुघरालेवालोंवाली, (इसिं पामा भावी छ. (ताओण सालभंजियाओ लीलहियाओ सुपइट्टियाभो सुअलंकियाओ णाणीविहरागवसणाओ णाणामल्लपिणद्धाओ मुट्ठिगिज्नसुमज्झाओ) २ मधी ARARI (पूतजी) . ४२ती तावामां भावी છે. બધી સારી રીતે પ્રતિષ્ઠિત કરેલી પ્રકટ કરવવામાં આવી છે. સર્વ પ્રકારના શૃંગારેથી તેમને શણગારવામાં આવી છે તેમજ તેમણે જે વસ્ત્રો પહેરેલાં છે તે અનેક જાતના રંગથી રંગેલાં છે. ઘણી જાતની માળાઓ તેમણે પહેરેલી છે. એમને મધ્યભાગ એટલે કે કમર—એટલી સાંકડી બતાવવામાં આવી છે કે તે એક મુઠીમાં જ समाविष्ट थ४ य. (आमेलगजमलजुगलबहिय अ०भुन्नयपीरइय संठिय पीवर पोहराओ) मे स 2 मे४०४ सरमा मनासा मे भुटाना 24 स२ गोण આકાર વાળા, તેમજ બહુ જ ઉન્નત, સામેની તરફ વક્ષમાંથી બહાર નીકળતા અને परिपुष्ट माशी युत मेवा में विशाण रत्नावाजी तमन (रत्तावंगाओ, असिय केसिओ, मि उत्रिसयपसत्थलकावणसंवेल्लियग्गसिरयाओ) २४त (anet) નેત્રાન્ત ભાગવાળી કાળા રંગના વાળ વાળી મૃદુકમળ, વિશદ–નિર્મળ, પ્રશસ્ત લક્ષણે યુકત, પરસ્પર સંલેષણ રૂપ શોભન લક્ષણવાળા વાંકડીઓ વાળ વાળી)
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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