SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 360
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४६ राजप्रश्नीयसूत्रे लप्रतिष्ठानाः सुरभिवरवारिमतिपूर्णाः चन्दनकलशकृतचर्चाकाः आविकण्टेगुणाः पझोत्पलपिधानाः सर्वरत्नमयाः अच्छा यावत् प्रतिख्याः महान्तः महेन्द्रकुम्भसमानाः प्रज्ञप्ताः श्रमण ! आयुप्मन् ! तेपी खलु द्वाराणामुभयोः पार्श्व यो विधातो नपेधिक्यां पोडश पोडश नागदन्तपरिपाटयः प्रज्ञप्ताः। ते ग्वा नागदन्ताः मुक्काजालान्तरोच्छि(ते णं चंदणकलसा वरकमलपइटाणा, मुरभिवरवारिपडिपुण्णा चंदणकयच. चगा आविद्धकंठेगुणा, पउमुप्पलपिहाणा, सबरयणामया अच्छा जाय पडिरूवा महया महया इंदकुभसमाणा पण्णत्ता समणाउमो) हे श्रमण ! आयुष्मन् ! वे चन्दन कलश प्रधान कमलरूप आधारपर स्थिर है, सुगंधित उत्तमजल से परिपूरित है, चन्दन से इनके ऊपर लेप किया गया है. इनके कठो पर रक्त मत्र बंधे हुए हैं, इनके मुख पक्ष और उत्पल ये दोनो ढकन के रूप में रखे गये हैं, ये सब कलश सर्वथा रत्नमय हैं आकाश और स्फटिक मणि के जैसे निर्मल हैं, यावत् प्रतिरूप है, बहुत बडे हैं और वृहत् महेन्द्रकुंभ के समान कहे गये है। (तेलि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ णिसीहियाए सोलस लोलस णागतपरिवाडीओ पणत्ताओं) उन द्वारों के वामदक्षिणपाश्च के एक एक उपवेशन स्थान में १६-१६ छोटी २ खूटियां कही गई हैं। (तेणं णागता मुत्तांजालंतरुस्लियहेमजाल. लेणचंदणकलसा वर कमलपइट्टाणा, सुरभिवरवारिपडिपुण्णा चंदणकय. चचगा आविद्धक ठेगुणा, पउमुप्पलपिहाणा सदरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा महया इंदकुभसमाणा पण्णता समणाउसो) हे श्रम! मायुमन ! તે ચંદન કલશે પ્રધાન કમળ રૂપ આધાર પર સ્થિત છે. ઉત્તમ સુગંધિત પાણીથી પરિપૂરિત છે, તેમના ઉપર ચંદનનું લેપન કરવામાં આવ્યું છે, કલશના કંઠ પ્રદેશો રક્ત (લાલ) સૂત્રથી બાંધેલા છે. તેમના મુખ કમળ અને ઉત્પલ આ બંનેથી આચ્છાદિત છે. આ બધા કલશે એકદમ રત્નના બનેલા છે આકાશ તેમજ ફટિક મણિની જેમ તે બધા નિર્મળ છે યાવત્ પ્રતિરૂપ છે, બહુ વિશાળ છે, તથા મોટા મહેન્દ્રકુંભ २वा ४४वाय छ. (सिणं दाराण उमओ पासे दुहओ णिसीहियाए सोलम सोलस णागदंतपरिवाडीओ पण्णत्ताओ) - Raicाना मी भने भए मातुना हरे ४२४ पवेशन स्थानमा १६-१६ नानी नानी भीटीमा ४वाय छ. (ते ण ___णागदंता . मुत्ताजालंतहस्सिय हेमजालगवक्खजालविखिणीघंटाजाल
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy