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________________ ३१३ - सवाधिनी टीका. सू. ९० सूर्याभेग नाटविधिप्रतिसंहरणप - टीका--'तएण' ते बहवे देवकुमारा' इत्यादि, व्याख्या सुगमा ।मू. ४९।' मूलम्-तएणं से सूरियाभे देवे तं दिव्य देवि दिव्वं देवजुई दिव्वं देवाणुभावं पडिसाहरइ पडिसाहरेत्ता खणेणं जाए एगे एगभूए। तएणं से सूरियाभे देवे समर्ण भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपया हिणंकरेइ,केरित्ता वंदइ नमसइ,बंदित्ता नभसित्ता नियगपरियालसद्धि संपरि वुडे तमेव दिव्वं जाणविमाणं दुरूहइ दुरूहित्ता जामेव दिसं पाउभूए तामेव दिसं पडिगए ॥ सू० ५०॥ छाया--ततः खलु स मर्याभो देवस्तां दिव्यां देवद्धि दिव्यां देव ति दिव्यं देवानुभावं प्रतिसंहरति, प्रतिसंहृत्य क्षणेन जात एक एक भूतः। ततः बद्धा ति) वहां आकर के उन्होंने मूर्या मदेव को दोनों हाथों की अंजलि बनाकर और उसे मस्तक पर रखकर जय विजय शब्दों के उच्चारण करते हुए बधाया. (बद्धाविना एकमाणतिय पञ्चप्पिणत्ति) बधाकर उसकी इस आज्ञा को पीछे अर्पित कर दिया. अर्थात् हमने आपकी आज्ञा अनुसार सब कार्य कर दिया है. ऐसा-उमसे निवेदन किया । टीकार्थ मूलार्थ के जैसा ही है. ॥ सू०४९ ॥ 'तपणं से मृरियामे देवे इत्यादि। मन्त्रार्थ--(तरणं) इसके बाद (से भूरियामे देवे) उस सूर्याभदेवने (त दिव्वं देविड दि देवजुई दिव्वं देवाणुभाइ पडिसाहरइ) उस दिव्य (उवागच्छित्ता मूरियाम देव करयलगरिग्गहिय सिरसावत्त मत्थए अंजलि कटु जएण विजएण बद्धा ति) त्यां पायी तमा सूर्याभवन भने हायानी અંજલી બનાવીને અને તેને મસ્તકે મૂકીને જય વિજય શબ્દોનું ઉચ્ચારણ કરતાં qधाभए माथी. (वद्धावित्ता एकमाणत्तिय पञ्चप्पिणति) घाम पान સૂર્યદેવને આજ્ઞા સમર્પિત કરી એટલે કે તેઓ બધાએ મળીને નિવેદન કર્યું. કે “આપશ્રીની આજ્ઞા પ્રમાણે અમેએ બધું કામ પૂરું કર્યું છે ” આ સૂત્રને ટીકા મૂલાઈ પ્રમાણે જ છે. તે સૂઈ ૪૯ "तएणं ते मुरियामे देवे' इत्यादि। सूत्रार्थ -(तएण) त्यार पछी (से सूरियाभे देवे) ते सूर्यासवे (तदिन देविदि हिन्द देवजई दिव्य देवाणुभापडिसाहरइ) हिव्य वादिन. हि वधुतिन मन हिन्यवानुमापने पाता। शरीरमा प्रविष्ट 30li (पडिसाह.
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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