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________________ १८ सुबोधिनी टीका. सूर्याभस्यावधिना जम्बूद्वीपदर्शनम् । अनीकैः सप्तभिः अनीकाधिपतिभिः षोडशभिः आत्मरक्षकदेवसाहस्राभिः अन्यश्च यहुभिः सूर्याभविमानवासिभिः वैमानिकैः दवेश्च देवोभिश्च साधं संपरिहतः महता आइतनाटयगीतवादितनन्त्रीतलतात्रुटितघनमृदङ्ग पटुपवादितरवेण दिव्यान भोगभोगान् सुजानो विहरति । इमं च बल केवलकल्लं जम्बहान द्वीपं विपुलेनावधिना आभोगयन्२ पश्यलि ॥० २|| देवों के साथ (सपरिवाराहि चर्हि अगमहिसीहि) परिवारसहित चार अग्रमहिषियों के साथ (तिहि परिसाहि) तीन परिषदाओं के साथ (सत्तर्हि अणएहि) सात अनीक-सैनिकों के साथ (सत्तहिं अगियाहिबई हि) सात अनीकाधिपतियों के साथ (मोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्लीहिं) १६ हजार आत्मरक्षक देवों के साथ तथा और (अन्नेहि य बहहिं भूरियाभविमाणवासीहि वेमाणिएहि देवे हि य सद्धि संपरिडे) भी अनेक दुमरे सूर्याभविमानवासी वैमानिक देवों के साथ परित हुआ (मया ग्राहयनहगीयवाइयतंनीतलनाल. तुडियघणामुइंगगडुप्पवाइयरवेण) अनुरूप वादित नाटयगीतों के बाजों को तथा निपुणदेवों द्वारा बनाये गये तन्त्री, तल, ताल त्रुटित घनमृदङ्गों की जोर २ को अनिपूर्वक (दिव्याई भोगभोगाई भुजमाणे) दिव्य भोगों को भोगता हुआ अपना समय व्यतीत कर रहा था (इमंच णं केवलकप्पं, जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे २ पामइ) तथा केवलकल्प सम्पूर्ण -जंबूद्वीप नाम के इस द्वीप को विपुल अवधिज्ञान द्वारा वह उपयोग देता हुआ देख रहा था । २ ( चाहिं सामाणियसाहस्सीहि ) या२ ॥२ साभानि: देवानी साधे (मपरिचाराहि चउहि अग्गमहिसीहिं ) परिवारनी साथे तेभर या२ ५८।५।मानी साथे (तिहिं परिसाहिं ) परिपायानी साथे ( सहि अणिपहि) सात मनी सैनिकी साथे (सत्तहिं अणियाहिबईडि) सात मनीधिपतिमानी साथै (जोलसहि आयाक्वदेशमाहस्सोहि) १६२ यात्मरक्ष वानी साथे तेमr oilaa (अन्नेहिं य बहहिं मुरियाभविमाणवासीहि त्रेमाणिएहिं देवेहि य सद्धिं संपरिबुडे) पY ! सूर्याभविमानवासी वैमानि | मने पायानी साथ वीने (महया आइय नहगीय-वाइय-तंतो-तलनाल-तुडिय-धग मुइंगपडप्पनाइयरवेणं ) मनु३५ वाहित नाटयातनi मानी तेभ। નિપુણ દેવે વડે વગાડાયેલા તંત્રી, તલ, તાલ, કુટિત, અને ઘનમૃદંગના મોટા पनि पूर्व (दिवाई भोगभोगाई झुंजमाणे विहरह) हिय तेभर ससा याज्य मागान मा ४२ता पाता मत ५सा२ ४६ रह्यो डा. (इमं चणं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं आभोएमाणे २ पास इ) तेभल १८८५ સંપૂર્ણ જંબુદ્વીપ નામના આ દ્વિીપને પિતાના વિપુલ અવધિજ્ઞાન વડે ઉપગ પૂર્વક જોઈ રહ્યો હતે.
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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