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________________ सुकाधना टीका स. २९ सूर्याभस्य भगवत्पर्युपासना ૨૨૨ वन्दित्वा नमस्यित्वा नात्यासन्ने नातिदूरे शुश्रषमाणः नमस्यन् अभिमुखो विनयेन प्राञ्जलिपुटः पर्युपास्ते ॥ मु० २९ ॥ 'तएणं से सरियामे देवे' इत्यादि-. टीका--व्याख्या निगदसिद्धा। नवरम्-तत्र-पर्युपासना त्रिविधा यथाफायिकी१, वाचिकी२, मानसिकी चेति, तत्र कायिक्या यावत् सङ्कुचिता. ग्रहस्तपादः शुश्रूषमाणो नमस्यन् अभिमुखो विनयेन प्राञ्जलिपुटः पर्युपास्ते १, वाचिक्या-'यद यद भगवान् व्याकरोति एवमेतद् भदन्त! तथैतद भदन्त ! भगवान् महावीर से इस प्रकार कहा गया-तब वह हृष्ट-तुष्ट यावत् हृदय. चाला हुआ. (समगं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ) उसने उनी समयू श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना की, नमस्कार किया (वंदित्ता नमः सित्ता पच्चासण्णे णाइदरे सुम्मसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंज. लिउडे पज्जुवासइ) वन्दना नमस्कार करके फिर वह न अतिदा और न अतिपास ऐसे उचित स्थान पर धर्म सुनने की अभिलाषा से भगवान के समक्ष दोनों हाथों को जोडकर पर्युपासना करता हुआ बडे विनय के साथ बैठ गया। . टोकार्थ-इसका टोकार्थ स्पष्ट है यहां पर पर्युगापना तीन प्रकार की 'गई है-कायिकि १ वाचिकी २ और मानसिकी ३, इनमें दोनों हाथों को 'जोडकर चरणों को यथास्थान पर संकुचित करके उसको बैठना, धर्मसुनने की इच्छा से युक्त होना और बडे विनय के साथ प्रभु के समक्ष अपने योग्यस्थान पर बैठना यह कागिकी पर्युपासना है । भगवान्ने अपने उएपारनी भा गधी वा1 Airl त्यारे ते इष्टतुष्ट यावत् ४यवाणी थय।. (सम भगवं महावीरं वंदह, नमसइ) तेणे तत्क्ष श्रम लगवान महावीर नाश नभ७२ ४या. (वंदित्ता नमंसित्ता णञ्चासण्णे णाइईरे सुम्सुसमाणे णमंसमा अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ) वनातभर नभ२४.२ ४ीने पछी ने ન વધારે દૂર અને વધારે નજીક એમ ચોગ્ય સ્થાને ધર્મશ્રવણની ઈચ્છાથી ભગવાનની પાસે બંને હાથ જોડીને પર્યું પાસના કરતે એકદમ વિનમ્ર થઈને બેસી ગયા. ટીકાર્ય–આને ટીકીર્થ સ્પષ્ટ જ છે. અહીં પયુ પાસના ત્રણ પ્રકારની બતાવवामा मात्री छविधी (१), पाथिली (२), अने मानसिी (3), 'मामां मन हाथ જોડીને, પગોને યથા સ્થાન સચીન તેનું બેસવું, ધર્મશ્રમણું માટેની ઈચ્છા થવી અને એકદમ નગ્ન થઈને પ્રભુની સામે પિતાના ગ્રસ્થાને બેસવું ને કાચિકી પપ સના છે. ભગવાને પિતાના ઉપદેશમાં જે ધર્મનું વ્યાખ્યાન કર્યું તે પ્રતિ હે ભદત!
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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