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________________ ૨૨૮ राजप्रश्नीय .... कृत्यमेतत् सूर्याभ ! करणीयमेतत् सूर्याम ! आचीर्णमेतत् मूर्याभ ! अभ्यनुज्ञातमेनत् मूर्धाभ ! इति पदसों बोध्यः। एपां व्याख्याऽस्मिन्नेव सूत्रे पूर्व कृता। एतन्निरवधकृत्यत्वाद्भगवतोक्तम् । सावधकार्ये तु ते करणकारणानुः मोदनरहिता भवन्तीति विज्ञेयम् ॥ मू० २८ ॥ ....... मूलम्त एणं से सूरियाभे देवे समणेणंभगवया महावीरेणं एवं छत्ते लमाणे हट्ट, जाब हियए समणं भगव महावीरं वदइ नसंसह, वदित्ता नमलित्ताःणचासपणे णाइदूरे सुस्सूममाणे णमंसमाणे अभिसुहे विणणं पंजलिंउडे पज्जुवासइ ॥सू० २९॥ छाया-ततः बलु स सूर्याभो देवः श्रमणेन भगवता महावीरेण एवमुक्ता, सत् हृष्ट यावद् हृदयः श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्पति, यामा ! करणिजमेयं मरिगाभा ! आइण्णमेयं मूरियामा !' इस पूर्वोक्त पाठ का संग्रह हुआ है। इन पदों की व्याख्या इसी मूत्र में पहिले की जा चुकी है। तात्पर्षे कहने का यह है कि इन वन्दनादि कर्मों को कर्तव्यकोटि में जो भगवानने कहा है-सो ये सब कर्म निरवद्य कर्म हैअतः , इन्हें. कर्तव्यकोटि में कहा गया है। जो सावध कम होते हैंउनमें तो भगवान् करण, कारण, एवं अनुमोदना इनसे रहित ही होते है ऐसा जानना चाहिये. ॥ मू० २८॥ ....... 'तए णं से मृरियाभे देवे. इत्यादि। मुत्राथे-(तएण) इसके बाद (सें मरियामे देवे) वह मर्याम देव (समणेणं भगवया महावीरेणं एवं बुनै समाणे हट जाव हियए) जय श्रमण रियामा!' मा पनि सह थयो छ. या सवे पहनी ज्याच्या मा सूत्रमा . પહેલાં કરવામાં આવી છે મતલબ એ છે કે આ વંદન વગેરે કમેને જે ભગવાને કર્તવ્યની કક્ષામાં મૂક્યાં છે તેથી આ બધાં કર્મો નિરવદ્યકર્મ છે. એથી જ એમની ना तव्याटिमा ४२वामा पानी छ. २ सावध भी राय छ, तमाभी तो साવાન કરણ, કારણ અને અનુમોદન આ બધાથી રહિત જ હોય છે समानी सू०.२८ ॥ ..... ...... नणं से मरिया देवे, इत्यादि। 2. सूत्रार्थ-(तएण) त्या२ ५४ी. (से सरियाभे, देवे) ते स्थान है। (समणेणं भगक्या महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे दृष्ट जाब हियए) न्यारे श्रम (लवान में '.3
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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