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________________ १८७ - सुबोधिनो टीका. सू. २२ भगवद्वन्दनार्थ' भिस्य गमनव्यवस्था खलु सिंहासनस्य दक्षिणपौरस्त्ये अत्र खलु सूर्यामस्य देवस्य आभ्यन्नरपरिषदोऽष्टानों देवसाहस्रीणामष्ट भद्रासनसाहस्रीविकरोति, एवं दक्षिणे मध्यमपरिषदो दशानी देवसाहस्रीणां दश भद्रासनसाहस्रीषिकरोति, दक्षिणपश्चिये बाह्यपरिषदो द्वादशानां देवसाहस्रीणां द्वादशभद्रासनप्ताहस्रीकिरोति, पश्चिमे सप्तानामनीकाधिपतीनां सप्त भद्रासनोनि विकरोति । तस्य स्खलु सिंहासनस्य देवों के लिये चारहजार भद्रासनों की बिकुर्वणा की (तस्स णं मोहासणस्स पुरथिमेणं एत्यण सरियाभस्स देवस्स चउण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं चत्तारी महामणसाहस्लीओ विउव्वई) इसके बाद उसने उस सिंहासन की पूर्व दिशा में सूर्याभदेव की परिवार सहित चार अग्रमहिषियों के ली पे चार हजार भद्रासनों की विकुर्वणा की (तस्स णं सीहासणस्त दाहिणपुरथिमेण एत्थणं मरियाभस्स देव स्स अमितर परिसाए अट्टाह देव साहसीणं अट्ठ महासंणसाहस्सीओ विउच्चइ) इसके बाद उसने उस सिंहासन के अग्निकोने में सूर्याभदेव की आभ्यन्तरपरिपदा के आठ हजार देवों के लिये आठ हजार भद्रासनों की विकुर्वणो की । (एवं दाहिणेण मज्झिमपरिसाए, दसण्हं देवसाहस्सीणं, बारस भदासणसाहस्सीओ विउबइ) इसी प्रकार से उसने दक्षिण दिशा मध्यपरिषदा के दशहजार देवों के लिये दशहजार भद्रासनों को चिकुर्वणा की। नैऋत्यकोने में बाह्य परिषद के १२ हजार देवों के लिये १२ हजार भद्रासनो की विकुर्वणा की (पञ्चत्थिमेणं सत्ताह, अणियाहिबईणं, सत्तभदाणे विउव्वइ) तथा पश्चिम दिशा में सात मद्रासनानी वा ४N. (तस्स णं लीहासणस्स पुरथिमेणं एत्य णं मूरियाभस्स देवम्ग करण्ई अगपहिसीणं सपरिवाराणं चत्तारि महामणन्याहस्सीओ विउबई) ત્યાર પછી તે સિંહાસનની પૂર્વ દિશામાં સૂર્યાભદેવની પરિવાર સહિત ચાર અમહિધીઓ ચાર COM२ मद्रासनानी व ए॥ ४२. (तस्स ण सीहासणस्न दाहिनपुत्थिमेण एत्थण सूर्याभस्य देव अभितरपरिसाए अट्टाह देवसाहस्सीणं अह भदासगमाहस्तीओ विउठन) त्या२ पछी ते सिंहासनन PRA मा सूर्यामहेवना मान्यत: परिपहाना ALB S२ हेवोना माटे २418 01२ मद्रासनानी: विशुपा ४0. (एवं दाहिंणे णं मझ मपरिसाए दसण्हं देवसाहस्सीण वारस भद्दासणसाहस्सीओ विउच्चइ ) 21 પ્રમાણે તેણે દક્ષિણ દિશામાં મધ્ય પરિષદના દશ હજાર દેવેના માટે દશ હજાર ભદ્રાસની વિદુર્વણ કરી. નિત્ય કોણમાં બાહ્ય પરિષદના ૧૨ હજાર દેનાં માટે ૧૨ तर मद्रासेनानी विणा श्री. (पञ्चत्यिमेग सत्तह, अणियाहिंबईणं सत्तभदासणे. विउच्चइ) तेमना पश्चिम दिशामा सात मनिधिपतिमाना भाटे सात
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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