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________________ १७४ राजप्रश्नीय चकला, रश्यालया, सीहो, सोवणिया पाया, णाणामणिमयाइं पायलीलगाई जंबूणयमया गत्ताई, वइरालयासंधा, णाणामणिम ये विच्चे । से णं सीहासणे ईहाभियउसमतुरगनरमगरविहगवालगफिन्नरहरुसरभचमरकुंजरवणलयपउमलयभत्तिचित्तं सोरसारोवचियमणिरयणपायपी अत्थरगसिउमरसूरगणवतयकुसंतलिंबकेसरपच्चुत्थुयाभिरामे सुविरइयग्यताणे उचियखोमदुगुल्लपट्टपडिच्छायणे रस्तंसुअसंखुए सुरम्मे आईणगरूयसूरणवणीयतूलफासे मउए पासाईए दरिसणिजे अभि रूचे पडिरूवे ॥ सू० २१ ॥ छाया-खलु प्रेक्षागृहमण्डपस्थ बहुसमरणीयं भूमिभागं विकरोति यावत् मणीनां स्पर्शः। तस्य खलु प्रेक्षागृहमण्डपस्य उल्लोकं विकरोतिईहामृगपमतुरगनरसकरविहगव्यालककिन्नररुरुशरभचमरकुञ्जरवनलतापद्म 'तस्स णं पेच्छाघरमंडवस्स' इत्यादि । सूत्रार्थ-(तस्स णं पेच्छाघरमंडवस्स) इस प्रेक्षागृह मंडप के (बहु. समरमणिजभूमिभाग विउवइ) बहुसमरमणीय भूमिभाग की फिर इस आ. भियोगीक देवने विकुर्वणा की (जाव मणीणं फासो) यहां पहिले का गया भूमिभाग का वर्णन सब कहना चाहिये. और वह मणियों के वर्णित स्पशेतक ग्रहण करना चाहिये. (तस्स णं पेच्छाघरमंडवस्स उल्लोयं विउवह) इसके बाद उस आभियोगिक देव ने उस प्रेक्षागृह मंडप के उपरिभाग की चिकुर्वणा की (ईहामिय उसम तुरग नरमकरविहगवालगकिन्नररुरुवमर 'तस्स णं पेच्छाघरमंडबस्स' इत्यादि । सूत्राथ:- (तस्स णं पंच्छाघरमंडवस्स) ते माय भ3पना ( बहसमरमा णिज्ज भूमिभाग विउचह) गहु सम मा २माय भूमिमायनी ते मालियाDix वे विनु । ४ .(जाव मणीणं फासो) मी पडसा रे भूमिमा २५ વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે તેવું જ સમજવું જોઈએ. મણિઓના સ્પર્શ વિષેના વર્ણન सुधीन वर्ष न ही यावत् २४थी समन्यु नये. (तस्स पेच्छाघरमंडवरस उल्लोयं विउच्चड) त्या२ पछी तेने मालियोगि हेवे ते प्रेक्षागड भ७५॥ 64PHUnt विशु ४२. (ईहामिय उसमतुरगनरमगरविहगवालगकिन्नररुरुसरभ
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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