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________________ १०२ प्रज्ञापनाने भदन्त ! कतिदिग्भ्यः पुद्गला उपचीयन्ते ? गौतम ! एवंञ्चैव यावत् वामगशरीरस्य, एवम् उपचीयन्ते, अपचीयन्ते, यस्य खलु सदन्त ! औदारिकशरीरं तस्य वैक्रियशरीरम्, यस्य वैक्रिशरीरं तस्य औदारिक शरीरस् ? गौतम ! यस्य औदारिकशरीरं तस्य चैक्रियशरीरं स्याद अस्ति, स्यान्नास्ति, यस्य वैक्रियशरीरं तस्य औदारिकशरीरं स्याद् अस्ति, स्थामा स्त, यस्य खलु भदन्त ! औदारिकशरीरं तस्य आहारशरीरं, यस्य आहारकशरीरं तस्त्र औदारिकतैजस और कार्मणशरीर के जैले औदारिक शरीर के ___ (ओरालियलरीरस्त भंते ! कहदिलि योग्गला पवचिति ?) हे भगवन् औदारिक शरीर के पुद्गल कितनी दिशाओं से उपचित होते हैं ? (गोयमा ! एवं चेव) हे गौतम ! इसी प्रकार (जाव कम्यगरीरस्म) मार्मणशरीर तक (एवं उवचिज्जति) इमी प्रकार उपचित्त होते हैं (अचिनति) अपचित होते हैं ' (जस्ल णं भंते ! ओरालियरूरीरं नस्ल वेधियसी) हे भगवन् ! जिस के औदारिकशरीर होता है, उसके दैनियशरीर होता है ? (जाल बेउब्धियसरीरं तस्स ओरालियसरीरं ?) जिसके क्रियशरीर होता है, उसके औदारिकशरीर होता है ! (गोयमा! जस्ल ओरालियसरीरं तल्स वेउव्जियलरीरं सिय अस्थि सिय नस्थि) हे गौतम ! जिल्ल के औदारिकशरीर होता है, उसके वैक्रियशीर कादा. चियू होता है, कदाचित् नहीं होता (जस्ल उब्बियसरीरं तस्स ओरालियसरीरं सिय अस्थि, लिया नलिथ) जिस के क्रियशरीर होता है, उसके औदारिकशरीर कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं होता । (जस्ल णं मंते ! ओरालियलरीरं तरल आहार मरी) हे भगवन् ! जिसके . औदारिकशरीर होता है, उसके आहारकशरीर होता है ? (जाल आहारगसरीरं (ओरालियसरीरस्स णं भंते | कइदिसिं पोग्गला उचिज्जति) 3 सगवन् ! गौ२ि४शरीरन। पुस ४ी हिशामाथी पति य छ (गोयमा एवंचेव) गौत५ । 20 अरे (जाव कम्मगसरीरस्स) यावत् रामशरीर सुधा (एवं उचिज्जति) मे रे पायत थाय छे (अवचिज्जति) मपथित थाय छे. (जस्स णं भंते । ओरालियसरीरं तस्स वेउव्वियसरीरं १) पन् । २. गो२ि४२।२ डाय छे, तेना वैठियशरीर हाय ? (जन्स उब्बियसरीरं तस्स ओरालियसरीरं ?) तु वैयिशरी२ डाय छ, तेनु मोहा२ि४शरीर डाय छ ? (गोयमा ! जस्स ओरालियसरीर तस्स वेउब्बियसरीर सिय अत्थि सिय नस्थि) हे गौतम । ॥ मोहारि४शरीर डाय छ, तेना वष्ठियशरी२ ४ायित् हाय छ भने हायित् नथी तi (जत्स वेउव्वियसरीर तस्स ओरालियसरीर सिय अस्थि, सिय नत्थि) रेना वैठियशरीर डा छ, तनयोहानिशरीर हायित् हाय छ, અને કદાચિત્ નથી લેતાં. । (जस्स णं भंते ! ओरालियसरीर तस्ल माहारगसरीर) है मगवन् ! नु मोहा।२४ N२ बाय १ तेनु मा।२६AR Bाय छे, (जस्स आहारकसरीर तस्स ओरालियसरीरं ।।
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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