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________________ प्रशापनास्त्र श्वासाः सर्वेऽपि पृच्छा, गौतम ! एवं यथा औधिगमकस्तथा सलेश्यागमकोऽपि निरवशेषो भणितव्यो यावद् वैमानिकाः, कृष्णलेश्याः खलु भदन्त ! नैरयिकाः सर्वे समाहाराः पृच्छा, गौतम ! यथा औधिकाः, नवरं नैरयिका वेदनायां मायिमिथ्यादृष्टयुपपन्नकाश्च अमायिसम्यग्दृष्टयुपपन्न काश्च भणितव्याः शेपं तथैव यथा औधिकानाम्, अमुरकुमारा यावद्-वानव्यन्तराः, एते यथा औधिकाः, नवरं मनुष्याणां क्रियाभिर्विशेपो यावत् तत्र खलु ये ते सम्यग्दृष्टय स्ते त्रिविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-संयताः, असंयताः, संयतासंयताश्च यथा निस्सासा) समान उच्छ्वास निवासवाले (सव्वे वि) सभी (पुच्छा) प्रश्न (गोयमा) हे गौतम ! (एवं। इस प्रकार (जहा) जैसे (ओहिगमओ) सामान्य का गम कहा है (तहा) वैसे ही (सलेस्सागमओ वि सलेश्य का गम भी (भाणियव्वो) कहना चाहिए (जाव वेमाणिया) यावत् वैमानिकों तक । (कण्हलेस्सा णं अंते ! नेरइया) हे भगवन् ! कृष्णलेश्यावाले नारक (सब्वे समाहारा) सब समान आहारवाले होते हैं ? (पुच्छा। प्रश्न (गोयमा ! जहा ओहिया) हे गौतम ! जैसे औधिक-सामान्य (नवरं) विशेष (नेरइया) नारक (वेयणाए) वेदना की अपेक्षा से (माइमिच्छादिट्ठी उववनगा य) मायी-मिथ्यादृष्टि-उत्पन्न (अमाइसम्मदिट्ठी उववन्नगा य) और अमायी सम्यग्दृष्टि उत्पन्न (भाणियव्वा) कहना चाहिए (सेसं तहेव) शेष उसी प्रकार (जहा ओहियाणं) जैसे ओधिकों का। (असुरकुमारा जाव वाणमंतरा) असुरकुमार यावत् वानव्यन्तर (एते जहा ओहिया) ये औधिकों के समान (नवरं मर्गुस्साणं किरियाहिं विसेसो) मनुष्यों में क्रिया की अपेक्षा विशेषता है (जाव) यावत (तत्थ णं जे ते सम्मदिट्ठी) नि:श्वासवाणा (सव्वे वि) मधाना समयमा (पुच्छा) प्रश्न (गोयमा) गौतम ! (एवं) से हारे (जहा) २१॥ (ओहिगमओ) समान्य नागम (तहा) ते (सलेस्सागमओ वि) सोश्याना मप (भाणियव्वो) ४ा नये (जाव वेमाणिया) वैमानि सुधी। __(कण्हलेस्साणं भंते ! नेरइया) ॐ भगवन् ! श्याप ना (सव्वे समाहारा) मा समान माडवा छ (पुच्छा) प्रश्न (गोयमा ! जहा ओहिया) गौतम l मौघि सामान्य (नवरं) विशेष (नेरइया) ना२४ (वेयणाए, हनानी अपेक्षाथी (मागीमिच्छा दिट्ठी उबवन्नगाय) माथी-मिथ्याटि ५-न (अमाइ सम्मदिदी उववन्नगाय) अने अभाया सभ्यष्टि G4-1 (भाणियन्या) ४वा न (सेसं तहेव) शेष मे ४ारे (जहा ओहियाणं) २५० मीधिना ४ा छे. (असुरकुमारा जाव वाणमंतरा) असुमार यावत् वनव्यन्त२ (एते जहा आहिया, dulluना समान (नवरं मणुस्साणं किरियाहिं विसेसो) भनुध्यामा छियानी भपक्षात
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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