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________________ ---___७५१ प्रमेयपोधिनी टीका पद २१ सू० ७ आहारकशरीरनिरूपणम् ग्दृष्टि पर्याप्तकसंख्येयवर्पायुष्कर्मभूमिगगर्मव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरं किम् ऋद्धिप्राप्तप्रमत्तसंयतसम्यग्दृष्टि पर्याप्तकसंख्येयवर्पायुष्कर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकानुष्याहारकशरीरम्; अनृद्धिपाप्तामत्त संयतसम्यग्दृष्टि पर्याप्तकसंख्येयवर्षायुष्कर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्याहारकशरीरम् ? गौतम ! ऋद्धिप्राप्त मतसंयतसम्यग्दृष्टिपर्याप्तकसंख्येयवर्पायुष्कर मभूमिगगर्मव्यु-क्रान्तिकानुण्याहारकशरीरम्, नो अनृद्धिप्राप्तप्रमससंयतसम्यग्दृष्टपर्याप्तकसंख्येयवर्पाग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमि के गर्भज मनुष्य का आहारकशरीर नहीं होता (जइ अपमत्त संजय लम्नदिही एज्जतगसंखेज्जवालाउयकम्मभूमगगन्भ पक्कंतिय राणूल आहारगसरीरे) यदि अप्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमि के गर्भज अनुष्य का आहारकशरीर होता है (किं इड्पित्तअपमत्तसंजयसम्मादिद्वीपज्जगलंखेज्ज वासाउयकम्मभूमगगम्भवतिय मणूस आहारगखरोरे) क्या ऋद्धिप्राप्त अप्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमि के गर्भज मनुष्य का आहारकशरी होता है ? (अणिनिपत्तपत्तसंजयसम्मदिट्ठी पज्जत्तगसंखेज्जवासाउय कम्मभूमगगभपक्कंतिय मणूस आहारगसरीरे ?) अथवा अनृद्धिमाप्त अप्रमत्तसंयत लम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमि के गर्भज मनुष्य का आहारकशरीर होता है ? (गोयमा! इइढिपत्त अपनत्तसंजय सम्पट्टिीपज्जत्तगसंखेज्जवासाउय कम्मभूमगगमवतिय मणूस आहारगसरीरे). हे गौतम ! ऋद्धिमाप्त अप्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमि के गर्भज मनुष्य का आहारक शरीर होता है 'णो अणिहि पत्तपमत्तसंजयसम्म પર્યાપ્ત સંખ્યાત વર્ષની આયવાળા કર્મભૂમિના ગર્ભજ મનુષ્યના આહારકશરીર નથી હોતાં - (जइ अपमत्त संजय सम्मदिद्रि पज्जत्तगस खेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतिय मणूस आहारगसरीरे) 48 प्रमत्त सयत सभ्यष्टि पर्याप्त सच्यात वर्षनी मायु १॥ ४म भूमिना म मनुष्यना ॥२४॥२२ हाय छ (किं इढिपत्त अपमत्त संजय सम्मदिट्ठि पज्जत्तग स खेज्जवामाउय कम्मभूमग गम्भवतिय मणूस आहारगसरीरे) शुद्ध મા અપ્રમત્ત સંયત સમ્યગ્દષ્ટિ પર્યાપ્ત સંખ્યાત વર્ષની આયુવાળા કર્મભૂમિના ५. मनुष्यना २माडा२४शरी२ डाय छ ? (अणिढिपत्त अपमत्त स जय सम्मििट्ट पज: " सखज्जवासाउय कम्मभूमग गम्भवतिय मणूस आहारगसरीरे) अथवा अनुद्धिप्राप्त અપ્રમત્ત સંયત સમ્યગ્દષ્ટિ પર્યાપ્ત સંપાત વર્ષની આયુવાળા કર્મભૂમિના ગર્ભજ મનુષ્યના આહારકશરીર હોય છે ? (गोयमा । इढिपत्त अपमत्त संजय सम्मदिदि पज्जत्तग सखेज्जव साउय कम्मभूमग गम्भवक्कंतिय मंगूस आहारगसरीरे) गौतम ऋद्धिप्राप्त मप्रमत्त सयत सभ्यष्टि यात स. "यात् पनी मायुव भिना गरी मनुष्यना मा.२४२।१२ (णो अणि दि
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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