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________________ ७५७ पक्षापनार्थ ध्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरम्, यदि संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तकसंख्येयवर्पायुष्कर्मभूमि -गगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरं किं प्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तकसंख्येयवर्पायुष्कर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरम्, अप्रमत्तसंयतसम्यग्दृष्टि पर्याप्तकसंख्येयवर्पायुष्ककर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरस् ? गौतम ! प्रमत्तसंयतसम्यग्दृष्टि पर्याप्तकसंख्येयवर्पायुष्कर्ममूसिगमर्शव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरम्, नो अप्रमत्तसंयतसम्यग्दृष्टि पर्याप्तकसंख्येयवर्पायुष्कर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमजुष्याहारकशरीरम्, यदि प्रमत्तसंयतसम्य• रकशरीर नहीं होता। - (जह संजयसम्मट्टिीपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवतिय मणूस आहारगसरीरे) यदि संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमि के गर्भज मनुष्य का आहारकशरीर होता है (किं पमत्तसंजयसम्मट्ठिीपज्जत्तगसंखेज्जवासाउथ कम्मभूमगगभधक्कंतिय मणूस आहारगसरीरे) क्या प्रमत्तमंयतसम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमि के गर्भज मनुष्य का आहारकशरीर होता है ? (अपमत्तसंजयसम्पट्टिीपज्जत्तगसंखेजवासाउथकम्मभूमगगम्भवक्कलिय मणूस आहारगसरीरे ?) क्या अप्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमि के गर्भज मनुष्य का आहारकशरीर होता है ? (गोयमा ! अपमत्त संजयसम्मद्दिट्ठीपज्जत्तगसंखेज़्जवासाउय कम्मभूमगगम्भवतिय अणूस आहारगसरीरे ) हे गौतम ! अप्रसत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमि के गर्भज मनुष्य का आहारकारीर होता है (नो पमत्तसंजय सम्मदिहीपज्जत्तगसंखेज्जवासाउय कम्मभूमनभवनक्रतियलस आहारगसरीरे) प्रमत्त संयत सम्यપર્યાપ્ત સંખ્યાત વર્ષની અયુષ્યવાળા કર્મભૂમિના ગર્ભજ મનુષ્યના આહારકશરીર હેતા નથી. .. (जइ संजय सम्मदिट्ठि पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतिय मणूस आहारगसरीरे) यहि सयत सभ्यष्टि पर्याप्त सध्यात वषनी युवाका ४भभूमिना । मनुष्याना 24181२४३६२ (किं पमत्त संजय सम्मदिदि पज्जत्तग संखेज्जवासाउय कम्मभूमग गम्भवक्कतिय मणूस आहारगसरीरे) शु प्रमत्त सयत सभ्यष्टि सध्यातवर्षी मायुवाणा मभूमिना गर्म मनुष्यना माहा२३शरी२ डाय छे? (अपमत्त संजय सम्म दिदि पज्जत्तग संखेज्जवासाउय कम्मभूमग गम्भवक्कंतिय मणूस आहारगसरीर ?) शुभप्रभात સંયત સંમ્પટિ પર્યાપ્ત સ ખ્યાત વર્ષની આયુવાળા કમભૂમિના ગર્ભજ મનુષ્યના આહારકશરીર હોય છે ? (गोयमा ! अपमत्त संजय सम्मदिवि पज्जत्तग सखेज्जवालाउय कम्मभूमग गम्भवक्कंतिय मणूस आहारगसरीरे) गौतम ! मप्रमत्त संयत सभ्यष्टि यति सध्यात वषना मायुपाय न मनुष्यना माह।२४शरीर डाय छे (नो पमत्त संजय सम्मदिट्टि पज्जत्तग संखेज्जवासाउय कम्मभूमग गम्भवक्कंतिय मणूस आहारगसरीरे) प्रमत्त संयत अभ्याट
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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