SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 758
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद २१ ९० ७ आहारकशरीरनिरुपण ७६७ कसरीरम् ? अपर्याप्तकसंख्येयवप युष्मकर्मभूनिगगर्मव्युत्क्रान्तिनमनुष्याहारकशरीरम् ? गौतम ! पर्याप्तकसंख्येयवर्षायुरुकर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरम्, नो अपर्याप्तकसंख्येयवर्षायुष्कर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्ति कमनुष्याहारकशरीरम्, यदि पर्याप्तकसंख्येयवर्षायुष्कर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरं किं सम्पन्मुष्टि पर्याप्तकसंख्येयवर्पायुष्कर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारककरीर, मिथ्पादृष्टि पर्याप्त कसंख्येयर्पायुष्कर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्ति कमनुष्याहारकशरीरम्, सम्यमिथ्या दृष्टि पर्याप्तकसंख्येयवर्पायुष्कर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिमनुष्य का आहारकशरीर होता है ? (गोयमा ! पजत्तग संखेज्जयासाउय कम्मभूमगगम्भवक्कंतिय मणूस आहारगलरीरे) हे गौतम ! पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमि के गर्भज मनुष्य का आहारकशरीर होता है (नो अपज्जत्तसंखेजवासाउय कम्लभूमगगम्भवतिय अणूस ओहारगसरीरे) अपर्याप्त सं. ख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमि के गर्भजमनुष्य का आहारकशरीर नहीं होता __ (जइ पज्जत्तगसंखेजवासाउय कम्मभूलग गम्भवतियमणूस आहारगसरीरे किं सम्पट्टिीपजत्तगसंखेजवालाउय कम्लभूमगगम्भवक्फतियमणूस आहारगसरीरे, मिच्छघिद्वीयपज्जत्ता संखेजदासाउय कम्मभूमग गम्भवक्कंतिय मणूस आहारगसरीरे, सम्मामिच्छष्टिीपज्जत्तग संखेजवासाउय कल्मभूमगगम्भ वक्कंतिय मणूस आहारगलरीरे ?) यदि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमि के गर्भज मनुष्य का आहारकशरीर होता है तो क्या सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आय वाले कर्मभूलि के गर्भज मनुष्य का आहारकशरीर होता है, अथवा मिथ्या दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमि के गर्मज कम्मभूमग गन्भवतिय सणूस आहारगसरीरे ?) तो शुपति सभ्यात नी मायुવાળા કર્મભૂમિના ગર્ભજ મનુષ્યના આહારકશરીર હોય છે, અગર અપર્યાપ્ત સંખ્યાત વર્ષની આયુવાળ કર્મભૂમિના ગર્ભજ મનુષ્યના આહારકશરીર હોય છે? . (गोयमा ! पज्जत्तग संखेन्जवासाउय कम्मभूमग गमवक्कंतिय मणूस आहारगसरीरे) હે ગૌતમ ! પર્યાપ્ત સંખ્યાત વર્ષની આયુવાળા ઠર્મભૂમિના ગર્ભજ મનુષ્યના આહારક२०१२ डाय छे (नो अपज्जत्तग संखेज्जयासाउय कम्मभूमग गन्भवतिय मणूस आहारगशरीरे) अ५०१ सण्यात वषनी आयुवामा ४मभूभिन म मनुष्यना मा १२४શરીર નથી હોતા - (जइ पज्जत्तग संखेज्जवासाउय कम्मभूमग गम्भवक्कंतिय मणूस ओहारगसरीरे किं सम्म द्विढि पज्जत्तग संखेज्जवासाउय कम्मभमग गमवक्कंतिय मणूस आहारगसरीरे, मिच्छादिदि पज्जत्तग स खेज्जवासाउय कम्मभमग गम्भवतिय मणूस आहारगसरीरे, सम्मामिच्छदिद्धि पग्मत्तग सखेज्जवासाउय कम्मभमग गम्भवतिय मणूस आहारगसरीरे १) या यात ખ્યાત વર્ષની આયુવાળા કમિજ મનુષ્યના આહારકશરીર હેય છે, તે શું' સમ્ય
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy