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________________ प्रबोधिनी का पद २१ सू० ७ आहारकशरीरनिरूपणम् ७४५ पारकशरीरं यदि गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्पाहारकशरीरं किं कर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकारीरम्, अकर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरम्, अन्तर द्वीपगगर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्याहारकशरीरम् ? गौतम ! कर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरं नो अकर्मभूमिगगर्भग्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरम्, नो अन्तरद्वीपगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरम्, सरीरे ?) अगर मनुष्य का आहारकशरीर होता है तो क्या संमूर्छिम मनुष्य का आहारकशरीर होता है अथवा गर्भज मनुष्य का आहारकशरीर होता है ? (गोयमा ! नो समुच्छिम लणूस आहारगसरीरे, गम्भव कंतिय मणूस आहारग सरीरे) हे गौतम ! संमृछिम मनुष्य का आहारकरारीर नहीं होता, गर्भज मनुष्य का आहारक शरीर होता है। (जइ गम्भवक्कंतिय मणूस आहारगसरीरे किं कम्मभूमग गम्भवतिय मणूस आहारगसरीरे अंतरदीवग गम्भवतिय मणूस आहारगसरीरे ?) यदि गर्भज मनुष्य का आहारकशरीर होता है तो कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य का आहारकशरीर होता है, अकर्मभूमिज गर्भज मनुष्य का आहारकशरीर होता है अथवा अन्तरद्वीपज गर्भज मनुष्य का आहारक शरीर होता है ? (गोयमा ! कम्मभूमग गन्भवतियमणूम आहारगसरीरे) हे गौतम ! कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य का आहारकशरीर होता है (नो अकम्मभूगगम्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे) अकर्मभूमिज गर्भज मनुष्य का आहारक शरीर नहीं होता (नो अंतरद्दीवग गन्भवतिय मणूस आहारग सरीरे) अन्तरद्वीपज गर्भज मनुष्य का आहारक शरीर नहीं होता (जई कम्लभूमगगम्भवतिय मणूस आहारगसरीरे) यदि कर्मभूमि के २२ डाय छे ? (गोयमा। नो समुच्छिम मणस आहारगसरोरे, गन्भवतियमणूसआहा. रंगसरीरे) गोतम ! स भूछिभ मनुष्यना महा२४शरीर नथी हाता, गम मनुष्यना આહરકશરીર હોય છે (जगन्भवतिय मणुस आहारगसरीरे किं कम्मभूमग गब्भवकंतिय मणुस आहारगसकम्मभूमग गन्भवतियमणूस आहारगसरीरे, अंतरदीप्पगगम्भकतियमणूस आहा. 2 વદિ ગર્ભજ મનુષ્યના આહારકશરીર હોય છે, તે શું કર્મ ભૂમિજ ગર્ભજ જ આહારશરીર હોય છે કે અકર્મ ભૂમિજ ગર્ભજ મનુષ્યના આહારકશરીર હોય या त सन्तदीयन गर भतण्याना माहा२शरीर हाय छ १ (कम्मभूमगगभवकतिय मणूस आहारगसरीरे) गौतम! भभि गर्म मनुष्यना माहार: ४ मनुष्यना माहीकम्मभूमग गभवतिय मणस आहारगसरीरे) मम भूमिका " Sal (नो अंतरदीवगग भवतिय मणूस आहारगसरीरे) मन्तवा५४ ગર્ભજ મનુષ્યનાં આહારકશરીર નથી હોતા रीरे अकम्मभूमग गन्भवतियमणूस रंगसरीरे) या Mr मनुष्यना माहार મનુષ્યના ગતિમ ! કર્મભૂમિજ ગર્ભજ મનુષ્યના આહારકશરીર હોય છે २५शरीर नया डातi (नो अतरद
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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