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________________ प्रमेययोधिनी टीशा पद २१ १० ६ वैक्रियशरीरसंस्थाननिरूपणम् ७०७ लस्यासंख्येयभानम्, उत्कृप्टेन पञ्चदशधनपि सार्द्धद्वयं रत्नयः, शर्करानभायाः पृच्छा, गौतम ! यावत्, तत्र खलु याऽसौ गवधारणीया सा जघन्धेन अङ्गुलस्यासंख्येयभागम्, उत्कृप्टेन पञ्चदशधपि सार्द्धद्वयम् जघन्येन रत्मयः, शर्कराप्रमायाः पृच्छा, गौतम ! यावत्, तत्र खलु याऽसौ भवधारणीया सा जघन्येन अङ्गुलख्या संख्येयभाषम्, उत्कृष्टेन पश्चदश धपि सार्द्धद्वयं रत्नयः, तत्र खलु याऽसौ उत्तरक्रिया सा जघन्येन अङ्गुलस्य संख्येयभागम्, उत्कृष्टेन एयविशद् धनपि एका च रनिः, वालुकाप्रभाषाः पृच्छा, भवधारणीया जहण्णेणं अंगुलस्त असंखेज मागं) यह जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग है 'उकोसेणं ससघ तिषिण रयणीओ छन्च्च अंगुलाई) उत्कृष्ट सात धनुष, तीन हाथ और छह अंगुर की है (तत्थ णं जा ला उत्तरदेउब्धिया) उनमें जो उत्तरवैक्रिय अवगाहना है (ला जहणेणं अंगुलस्त संखेज्जामागं) वह जघन्य __ अंगुल के संख्यातवें भाग (उझोलेणं पण्णरल धणूई अड्ढाइज्जाओ रयणीओ) उत्कृष्ट पन्द्रह धनुप अढाई अंगुल की है। (सकारपसाए पुच्छर ?) शर्मरामभा में पृच्छा ? (गोयला ! जाच तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा) यावत् उनमें जो भधारणीय है (सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग) वह जघन्य अंशुल के असंख्यातवें भाग (उकोसेणं पण्णरस धणूई अड्ढाइज्जाओ रवणीओ) उत्कृष्ट पन्द्रह धनुष और अढाई हाथ की (तत्थ णं जा सा उत्तर वेउव्विया सा जहण्णेणं अंगुलरल संखेज्जइ भाग) उसमें जो उत्तर वैक्रिय अवगाहना है वह जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग है (उकोसेणं एकतीस धणूई एका य रयणी) उत्कृष्ट एकतीस धनुष और एक हाथ की है। (वालयप्पभाए पुच्छा) वालुका प्रभा पृथ्वों के विषय में पृच्छा ? (भव. १२ सय २णीय मन सत्तरवैठिय (तत्थणं जा सा अवधारणिज्जा) तेमा २ सधारणीय छ (सा जहण्णेणं अंगुलस्स अस खेज्जइभाग) 14.५ मशुलना मध्यातभाला (उकोसेणं सत्त धणूई तिणि रमणीओ छच्च अंगुलाई) कृष्ट सात धनुष, हाथ मने छ मांगनी छ (तत्थणं जासा उत्तरवेउव्विया) मा उत्तराय: सबगाडना छ (सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेजहभाग) ते वन्य शुसना सध्यातभाला (उकोसेणं पण्णरसधणूइं अढाइजाओ रयणीओ) 6ष्ट ५१२ धनुष मने पढी सनी छ. (सकरप्पभाए पुच्छा ?) २४२। अलामा २४ ? (गोयमा ! जाव तत्थणं जासा भवधारणिज्जा) यावत् तमारे सारणीय छ (सा जहण्णेणं अंगुलस्स असखेज्जइभाग) ते मसन। असभ्यातमाला (उकोसेणं पण्णरस धणूई अढाइज्जाओ रयणीओ) Stre ५४२ धनुष भने मढी लायनी (तत्थणं जासा उत्तरवेउब्धिया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग) मा सत्तरवैठिय अगाडना छ ते ४५-५ २५ सुसने से ज्यातभासा छ (उकोसेणं एकतीस धणूई एक्काय रयणी) Gष्ट मे४त्रीस धनुष मले से हथिनी छे. (वालयप्पभाए पुच्छा) पादुमा पृथ्वीना विषयमा २७ ? (भवधारणिज्जा एकतीस
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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