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________________ ७०६ धारणीया च उत्तरवैक्रिया च, तत्र खलु याऽसौ अवधारणीया सा जघन्येन अगुलस्यासंख्येयभागम्, उष्कृष्टेन पञ्चधनुः शतानि, तत्र खलु याऽसौ उत्तरवैक्रिया सा जघन्येन अगुलस्य संख्येयभागम्, उत्कृष्टेन धनुःसहस्रम्, रत्नप्रभापृथिवीनरयिफाणां भदन्त ! कि महालया शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता ? गौतम ! द्विविधा प्रज्ञप्ता, तबथा-संवधारणीया च उत्तरवैक्रिया च, तत्र खलु या असौ भवधारणीया सा जघन्येनाङ्गुलस्यासंख्येयभागम, उत्कृष्टेन सप्तधनू पि तिस्रो रत्नयः, षट्चाङ्गुलानि, तन खलु याऽसौ उत्तरवैक्रिया सा जघन्येन अगु. (नेरइय पंचिंदिय देउब्वियसरीरल गं अंते ! केमहालिया सरीरोगारणा पण्णत्ता !) हे भगवन् ! नारक पंचेन्द्रिय के वैकिय शरीर की अवगाहना कितनी कही है ? (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! दो प्रकार की कही है (तं जहा) वह इस प्रकार (अवधारणिज्जा य उत्तर वेचिया य) अवधारणीय और उत्तरवैक्रिय (तत्थ णं जा सा अवधारणिज्जा) उनमें जो भवधारणीय है (सा जहपणेणं अंगुलस्ल अलखेज्जहभागं) वह जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग है (उकोसेणं पंचधणुसयाई) उत्कृष्ट पांच सौ धत्तुष की है (तत्थ णं जा सा उत्तर वेउब्धिया) उनमें जो उत्तर चैक्रिय है (सा जहण्णेणं अंगुलस्त संखेज्जभाग) वह :जघन्य अंगुल के संख्यातने भाग है (उझोलेणं धणुसहस्स) उत्कृष्ट हजार धनुष की है। (रयणपभा पुढवि नेरच्या णं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता !) हे भगवन् ! रत्नप्रभा पृथ्वी के नारों के शरीर की अवगाहना कितनी बडी कही है ? (गोयमा ! दुचिता पण्णत्ता, तं जहा-अवधारणिज्जा य उत्तरउचिया य) गौतम ! दो प्रकार की कही है, वह इस प्रकार-अवधारणीय और उत्तर वैक्रिय (तत्थ णं जा सा भरधारगिजा) उनमें जो अवधारणीय है (सा (नेरइय पंचिंदिय वेउव्वियसरीरेणं भते । के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता १) ३ भगवन् ! ना२४ पयन्द्रियाना वैठिय१२०२नी साना सी भारी छ १ (गोयमा दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! मे ५४२नी ४ छ (तं जहा) ते 20 अरे (भवधारणिज्जा य उत्तरवे उब्वियाय) सराय भने उत्तरवैठिय (तत्यणं जा सा अवधारणिज्जा) तेमाले सधार एणीय छ (सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग) ते धन्य ५ शुखना असभ्यातमीमा छे (उक्कोसेणं पंच धणुसयाई) Gष्ट पाय धनुषनी छ (तत्थणं जा सा उत्तरवेउव्विया) तेभारे उत्तरवैठिय छ (सा जहण्णेणं अंगुलस्स सखेज्जइभाग)ते धन्य मनुसना सभ्यातभाला छ (उकोसेणं धणुसहस्स) Bष्ट १२ धनुष छ.। (रयणप्पभा पुढवि नेरइयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णता ?) 3 लगवन् । २can Y2वीन नाहीना शश२नी अवासी भारी डिसा छ १ (गोयमा । दुविहा पण्णत्ता तं जहा-भवधाणिज्जा य उत्तरउच्चिया य) ॐ गौतम । मे ४२नी छ, त
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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