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________________ પટ entert द्वैत, यः खलु दन्त ! उपपद्येत स खलु केवलिप्रज्ञप्तं धर्म लभेत श्रवणतया ? गौतम ! recent लभेत, अस्त्येको नो लभेत, यः सलु केवलिप्रज्ञप्तं धर्मै लभेत श्रवणतया स खलु hairaat afi gara ? गौतम ! अस्त्येको बुध्येत, अस्त्ये को नो वुध्येत, यः खलु भदन्तं ! कैवलिकीं बोधि बुध्येत स खलु श्रदधीत प्रत्ययेत् रोचयेत् ? हन्त, गौतम ! यावत् रोचयेत्, यः खलु भदन्व ! श्रद्दधीत प्रत्ययेत् रोचयेत्, स खलु आभिनिवोकज्ञानश्रुतज्ञानावधिज्ञानानि वन् ! पंचेन्द्रियतियेचयोनिक पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिकों से (अनंतरं उव्वहित्ता) अनन्तर उद्वर्त्तन करके (नेरइए उच्चज्जेज्जा ?) सीधा नरकों में उत्पन्न होता है ? (गोयमा ! अत्थेगइए उबवज्जेज्जा, अत्येगइए णो उववज्जेज्जा) हे गौतम ! कोई उत्पन्न होता है, कोई उत्पन्न नहीं होता (जे णं अंते ! उववज्जेज्जा) हे भगवन् ! जो उत्पन्न होता है (से ण केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए) वह क्या केवलिप्रज्ञप्त धर्म का श्रवण प्राप्त करता है ? (गोयमा ! अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए णो लभेज्जा) हे गौतल ! कोई प्राप्त करता है, कोई प्राप्त नहीं करता (जे णं केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा) जो केवलिप्ररूपित धर्म प्राप्त करता है ( से णं केवलिं बोहि बुझेज्जा ?) वह केवलबोधिको बूझता है ? (गोमा ! अत्थे बुज्झेजा, अत्थेगइए जो बुझेज्जा) हे गौतम ! कोई बूझता 'है, कोई नहीं बूझता (जे णं संते ! केवलिं बोहिं बुज्झेजा) हे भगवन् ! जो केवलिबोधिको बूझता है ( से गं सहेजा ) वह श्रद्धा करता है ? (पत्तिएजा) प्रतीति करता है ? (रोएजा) रुचि करता है ? (गोधमा ! जाव रोएजा) हे गौतम! यावत् रुचि प्राप्त करता है (जे णं भंते! सदहेजा पत्तिएजा रोएजा) हे भगवन् ! जो श्रद्धा करता है, प्रनीति करता है, रुचि करता है (सेणं आभिणिन्द्रिय तिर्यथयेानि च येन्द्रिय तिर्यययोनि थी (अनंतर उच्चट्टित्ता) अनन्तर वर्तन छे ? (गोयमा ! ઉત્પન્ન થાય - हरीने (नेरइएस उववज्जेज्जा ?) सीधा नाराभां अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए णो उववज्जेज्जा) हे गौतम । अध उत्पन्न थाय छे, अर्ध नथी उत्पन्न थता (जेणं भंते ! उववज्जेज्जा) हे भगवन् ! में उत्पन्न थाय छे (से णं केवलि पण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए) ते शु हैवसी अज्ञात धर्मनुं श्रवणु आप्त ४रे ? (गोयमा । अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए णो लभेज्जा) हे गौतम! अर्थ प्राप्त भरे छे, अर्ध नथी प्राप्त ४२ता (जेणं केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा) ने देवसि प्र३चित धर्भ प्राप्त ४रे छे (सेणं केवलिं बोहिं बुज्झेज्जा) ते विसोधिने नशे छे (गोयमा । अत्येगइए बुज्झेज्ना, अत्थैगइए णो बुज्झेज्जा) डे गौतम । अव समन्ने छे, अर्ध नथी समता (जेणं भंते ! केवल बोहिं वुज्झेङजा) डे भगवन् । ने देवसिमाधि । समले छे (से णं सदहे जा) ते श्रद्धा रे B ? (पत्तिएज्जा) अतीति ४रे छे ? (रोएज्जा ) ३थि ४३ छे (गोयमा ! जाव रोज्जा ) गीत यावत् | ४रे छे (जेणं मंत्रे ! सदहेज्जा पत्तिएज्जा रोएन्जा) से लगवन् ! ने श्रद्धा छे, प्रतीति भने छे, ३थि छे से णं आभिवोहियनाण सुवणाण ओहि नाणा उप्पादेवजा १) 5
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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