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________________ ३९२ प्रथापनाको खल्लु भदन्त ! अवेदक इति पृच्छा, गौतम ! अवेदको द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-सादिको वा अपर्यवसितः, सादिको वा सपर्यवसिनः, तन खलु यः स सादिकः सपर्यासिनः स जघन्येन एकं समएम्, उत्कृष्टेन अन्तर्मुहर्त्तम्, द्वारम् ६" । सू० ६ ॥ ____टीका-पूर्व योगद्वारं प्ररूपितम् अथ पठं वेदद्वारं प्ररूपयितुमाह-सवेदएणं भो! सवेदएत्ति कालओ केवचिरं होइ ?' हे भदन्त ! सवेदका-सह-विद्यमानो वेदः-अनुभूतियस्य येन वा स सवेदक:-स्त्रीपुंनपुंसकत्यदेदसहितः सलु जीः 'सयेदर' इति-सवेदकत्वपर्यायविशिष्टः सन् कालतः-कालापेक्षया किच्चिरम्-कियत्कालपर्यन्तं निरन्तरं भवतिसमयं, उक्कोसेणं वणस्सह कालो (हे गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट वनस्पति काल तक __ (अवदए णं भंते ! अबदए ति पुच्छा ? (हे भगवन् ! अबेदक जीव अवेदक, इत्यादि प्रश्न? (गोयमा। अनेदे दधिहे एण्णत्ते) हे गौतम! अवेदी दो प्रकार के होते हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (सादीए वा अपज्जवसिए सादीए वा सपज्जवसिए) सादि अनन्त अथवा सादी सान्त (तत्य गां) उनमें (जे से साइए सपजवसिए) जो सादि सान्त है ( से जहण्णेणं एगं समयं उझोलेणं अंतोमुहुतं) वह जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्खहर्त तक (बार ६) टीकार्थ-इससे पूर्व योगद्वार की प्ररूपणा की गई थी, अब वेदवार की प्ररू. पणा की जाती है गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं- हे भगवन् ! सशेद अर्थात् स्त्रीवेद, पुरुषवेद अथवा नपुंसक वेद वाला जीव कितने काल तक लगातार सवेद पर्याय से युक्त रहता है ? . भगवात्-हे गौतम ! सवेदक जीय तीन प्रकार के होते हैं, वे इस प्रकार हैગૌતમ ! જઘન્ય એક સમય, ઉત્કૃષ્ટ વનસ્પતિકાળ સુધી. (अवेदए णं भो । अवेदएत्ति पुच्छा ?) भगवन् ! ग या ५ १ (गोयमा ! अवेदे दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! ग. मे ४१२ना डाय छ (तं जहा) तेसो २ शत (सादीए वा अपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए) साह मनन्त मथवा स सान्त (तत्थण) तमामा (जे से साइए सपज्जवसिए) 2 साल सान्त छ (से जहण्गेणं एग समय उकोसेणं अंतोमुहत्त) धन्य २४ समय, अष्ट मन्तभुत सुधी, (द्वा२ ६) ટીકાર્ય–આનથી પૂર્વગ દ્વારની પ્રરૂપણ કરાઈ હતી, હવે વેદકારની પ્રરૂપણા કરાઈ છે શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે– હે ભગવન ! સવેદ થતુ સ્ત્રીવેદ, પુરૂષવેદ, અથવા નપુંસકદવાળા જીવ કેટલા કાળ સુધી નિરન્તર સવેદ પર્યાયથી યુક્ત રહે છે ? શ્રી ભગવાન-હે ગીતમ! દક જીવ ત્રણ પ્રકારના હોય છે--અનાદિ અપર્યવાસિત
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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