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________________ ३९१ प्रमेयबोधिनी टीका पद १८ सू० ६ वेदद्वारनिरूपणम् कानि २, एकेन आदेशेन जघन्येन एक समयम् उत्कृष्टेन चतुर्दशपल्योपमाणि पूर्वकोटिपृथक्त्वाभ्यधिशानि ३, एकेन आदेशेन जघन्येन एक रामगर, उत् वृष्टेन एल्योपयशतं पूर्वकोटिपृथक्त्वम् ४, एकेन आदेशेन जघन्येन एक समयम् उन्कृप्टेन पल्योपमपृथवत्यम् पूर्वकोटि पृथक्त्वाभ्यधिकम् ५, पुरुपवेदः खलु भदन्त ! 'पुरुषवेद' इति पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृप्टेन सागरोदयशतपृथक्त्वं सातिरेशम, नपुंसरुवेदः खलु भदन्त ! नपुं. सकवेद इति पृच्छा, गौतम ! जघन्येन एक समयम्, उत्कृप्टेन वनस्पति कालः, अवेदकः पुहुत्तमभहियाई) पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक अठारह पल्मोपम तक (एगेणं आदेश) एक अपेक्षा ले (जहरणे एणं समय) जघन्य एक समय (उकोसेणं चउद्दसपलिभोवमाई पुज्यकोडिपुत्तमलहियाई) उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक चौदह पल्योपन तक (ग्गेणं आदेखेण जहाणेणं एगं समयं, उक्कोसेणं पलिओवमसतं पुछकोडिपुत्तममलिय) जघन्य एक समय, उत्कृष्ट सौ पल्योपम पृथक्त्वकोटिपूर्व अधिक (एशेणं आदेखणं जहणणेणं एग समयं, उकोसेणं पलिओ चमपुहुतं) एक अपेक्षा से जघन्य एस समय, उत्कृष्ट पल्योषम पृथक्त्व (पुव्वकोडि पुहुत्तमम्भहिय) पूर्वकोटि पृथक्स्थ अधिक। (पुरिसवेदे णं अंते ! पुरिसवेदेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ?) हे भगवन् ! पुरुषवेदी कितने काल तक पुरुपवेदी रहता है ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुतं, उक्को हेणं लागरोनमलतपुहुतं लातिरेग) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट सौ सागरोपम पृथक्त्व से कुछ अधिक (नपुंसगोए गं ते ! नपुंनगवेए त्ति पुच्छा ?) हैं भगवन् ! नपुंसकवेदी कितने काल तक नपुंशकवेदी रहता है, ऐसा प्रश्न (गोयमा ! जहण्णेणं एगं मन्भहियाई) पूटि पृथ५.५ ग५ि४ २ पक्ष्य। ५म सुधा (एगेणं आदेसेणं) मे४ ५२क्षाथी (जहण्णेणं एगं समय) धन्य ४ समय (उकोसेगं चउद्दसपलिओवमाई पुवकोडि पुहुत्तममहियाई) bट यूटि ५४.६ मधि४ यो पट्य।५म सुधी (एगेणं आदेसेणं जहण्णेणं एग समय, उक्कोसेणं पलिओवमसतं पुब्बकोडि पुहुत्तमभहिय) धन्य ४ सभय, मनट से पयो५म पृथत्व पूर्व मधि: (एगेणं आदेसेणं जहण्णेणं एगं समय, उक्कोसेणं पलिओवमपुहुत्तं) मे४ अपेक्षाथी धन्य से सभा, कृष्ट पक्ष्या५म पृथत्व (पुवकोडि पुहुत्तममहिय) पूटि पृथत्व . __(पुरिसवेदे णं भंते ! पुरिमवेदेत्ति कालो देवच्चिरं होइ ?) सावन् । ३५३ ४ा ण सुधी ५३५३ही पामा २९ छ ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमस्यपुहुत्तं सांतिरेग) 3 गौतम | धन्य 24-तभुत, कृष्ट से साम।५म पृथ४५थी six lux. (नपुंसगवेदए णं भंते ! नपुंसगवेएन्ति पुन्छा ?) वन । नस४वही हेटदा समय सुधी नस४३ही. २९ , मेवा प्रश्न (गोयमा ! जहण्णेग एगं समय, उक्कोसेणं वणस्सइकालो)
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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