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________________ ૩૯ प्रज्ञापनाने कृष्णश्यो मनुष्यो नीललेश्यं गर्भजनयेत् ? इन्त, गौतम ! जनयेत् यावत् शुक्ललेश्यं गर्भ जनयेत्. नीललेश्यो मनुष्यः कृष्णश्यं गर्म जनयेत् ? इन्त, गौतम ! जनयेत्, एवं नीक मनुष्य यावत् शुक्ललेश्यं गर्भं जनयेत्, एवं कापोतलेश्येन पपि आलापका भणितव्याः, तेजोलेश्यानामपि पद्मलेश्यानामपि शुक्ललेश्यानामपि एवं पद्विशद् आलापका ( एवं पुक्खरदीवे वि भाणियां) इसी प्रकार पुष्करद्वीप में भी कहना चाहिए (कण्हले से णं भंते! मस्से कण्हलेहसं गर्भं जणेज्जा ?) हे भगवन् ! कृष्ण लेइया वाला मनुष्य कृष्णलेच्या वाले गर्भको उत्पन्न करता है ? (हंता गोयमा ! जणेज्जा) हां गौतम ! उत्पन्न करता हैं ( कण्हलेस्ले मणुस्से नीललेस्सं गव्भं जणेखा ?) कृष्णलेश्या वाला मनुष्य नीललेश्या वाले गर्भ को उत्पन्न करता है ? (हंता गोयमा ! जणेज्जा) हां गौतम ! उत्पन्न करता है (जाव सुक्कलेस्सं गव्र्भ जणेखा) यावत् शुक्ललेश्या वाले गर्भ को उत्पन्न करता है (लीललेस्से मणुस्से कण्हलेस गग्भ' जणेज्जा) नीललेश्या वाला मनुष्य कृष्णलेश्या वाले गर्भ को उत्पन्न करता है ? (हंता गोयमा ! जणेज्जा) हां गौतम ! उत्पन्न करता है ( एवं नीललेस्से मणुस्से जाव सुक्कलेस्सं गन्धं जणेजा) इसी प्रकार नीललेइया वाला मनुष्य यावत् शुकलेश्या वाले गर्भ को उत्पन करता है ( एवं काउलेस्ले णं छप्पि आलवगा भाणि roat) इसी प्रकार कापोतलेश्या वाले से छहों आलापक कहना चाहिए (ते उलेसाण वि, पम्हलेसाण वि, सुक्कलेस्साण वि) तेजोलेश्या वालों के भी, पद्मलेश्या वालों के भी, शुक्लश्या गलों के भी ( एवं छत्तीसं आलावगा भाणियच्चा इस प्रकार छत्तीस आलापक कहने चाहिए ( एव पुक्खरदीवे वि भाणियां) से प्रारे पुष्डरद्वीपमा उहे लेडो (कण्इलेस्सेणं भंते ! मणुस्से कण्हलेस्सं गव्भ जणेज्जा १) हे भगवान् दृष्ट्णुलेश्यावाणा भनुष्य कृष्णुवेश्यावाना गर्लने उत्पन्न ! छे ? (हंता गोयमा । जणेज्जा ) हा गौतम | उत्पन्न ४२ छे (कण्णलेस्से मणुस्से नीललेस्सं गर्भं जणेज्जा ?) शृणुखेश्यावाणा भनुष्य नीससेश्यावाला गलने उत्पन्न हेरै छे ? (हंता गोयमा ! जणेज्जा ) डा, गौतम ! पत्र ४२ छे (जाव सुक्कलेस्सं गव्भं जणेज्जा) यावत् शुभ्ससेश्यावाणा गर्लने उत्पन्न हरे छे (नीललेस्से मस्से कण्हलेस्सं गब्भं जणेज्जा) नीससेश्यादाणा मनुष्य इष्णुश्यावाणा गलने उत्पन्न रे ? (हंता गोयमा 'जणेज्जा) डा गौतम । त्पन्न ४रे छे ( एवं नीललेस्से मस्से व सुक्कलेसं गव्भ' जणेज्जा) से प्रारे नीससेश्यावाणा भाषस यावत् शुउससेश्यावाणा गर्भने उत्पन्न ४रे छे (एव ं काउलेस्सेणं छप्पि आलावगा भाणियव्वा) से अहारे अयोतद्वेश्यावाणाथी छ आसाप४ ४हेवा भेध्य्ये (तेउलेत्साण वि, पम्इलेस्साण वि, सुक्क स्साण वि) तेनेोश्या. वाणाना पशु, पहुभलेश्यावाणाना चक्षु, शुभ्ससेश्यावाणाना पशु ( एवं छत्तीसं आलावा भाणियव्वा ) मे अक्षरे छत्रीस भासाया हेवा लेहये. L
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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