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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १७ सू० २३ मनुष्यादीनां लेश्यासस्यानिरूपणम् ३१६ मनुषीणामयि, एवम् अन्तरद्वीपमनुष्याणां मानुषीणामपि, एवं हैमवतैरवताकर्मभूमिगमनु ध्याणां मानुपीणाश्च कतिलेश्याः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! चतस्रः, तद्यथा-कृष्णा यावत् तेजो. लेश्या, हरिचर्परम्पकाकर्मभूमिगमनुष्पाणां मानुपीणाश्च पृच्छा, गौतम ! चतस्रः, तद्यथाकृष्णा यावत तेजोलेश्या, देवकुरूत्तर कुरु-अर्मभूमिगमनुष्या एवञ्चैव, एतासाश्चैव मानुषीणाम् एवञ्चैत्र, धातकीखण्डपूर्वार्द्धऽपि एवञ्चैव, पश्चिमार्द्धऽपि, एवं पुष्करद्वीपेऽपि भणितव्यम्, कृष्ण लेश्यः खलु भवन्त ! मनुष्य कृष्ण लेश्यं गर्भ जनयेत् ? हन्त, गौतम ! जनयेत, लेश्याएं कही है (तं जहा-कण्हा जाव तेउलेस्सा) वे इस प्रकार-कृष्ण यावत् तेजो लेश्या (एवं अकम्मभूमिगमणुस्तीण चि) इसी प्रकार अकर्मभूमि की मानुषियों को भी (एवं अंतरदीर मणुस्साणं मणुरूमीण वि) इस प्रकार अन्तरद्वीप के मनुष्यों और मनुष्यनियों को भी (एवं हेमवयएरन्नत्रय अकम्मभूमयमणुस्साणं मणुस्सीण य कह लेस्साओ पण्णताओ) इसी प्रकार हैसवत एवं ऐरण्यवत् अकमभूमि के मनुष्यों और मनुष्यनियों को भी कितनी लेश्याएं कहीं है ? (गोयमा! चत्तारि) हे गौतम ! चार (तं जहा-कता जान तेउलेस्सा) वे इस प्रकार-कृष्ण यावत् तेजोलेश्या (हरिबासरस्मगवास अकस्मभूलयमणुस्लाणं अणुस्सीण य पुच्छा ?) हरिवर्प-रम्यक वर्ष अकर्मभृमि के मनुष्यों और मनुष्यनियों संबंधी पृच्छा ? (गोयमा ! चत्तारि, तं जहा-कहा जाव तेउलेस्सा) हे गौतम ! चार यथा कृष्ण याश्त तेजोलेश्या (देवकुम उत्तरकुरु असम्मभूमयमणुस्ला एवं चेव) देवकुर और उत्तरअरू अकर्मभूमि के मनुष्य इप्सी प्रकार (एतेसिं चेव मणुस्सीणं एवं चेव) हन भी मनुष्यनियों की इसी प्रकार (धायहसंडपुरिमद्धे वि एवं चैव) धातकोखंड के पूर्वार्ध में भी इसी प्रकार (पच्छिसद्धे वि) पश्चिमा में भी ४७ छ (त जहा कण्हा जाव ते उलेस्सा) ते २प्रारे-५ यावत् तसश्या (एवं अकम्मभूमिग मणुस्सीण वि) मे मारे मनभिनी मानुषियोनी पY (एवं अंतर दीव मणुस्साणं मणुस्सीण वि) मे ५४ रे -तदीपना मनुष्यो म मनुष्यनीयाना ५९ (एवं हेमवए एरन्नवय अकम्भूमय मणुम्साणं मणुम्सीणं य कइ लेस्साओ पण्णत्ताओ) - २ भक्त तेमन भैरवत २५४म भूमिना मनुष्य मने मनुष्यनियानी सी श्याच्या ४ीछे ? (गोयमा ! चत्तारि) डे गौतम । यार (त जहा-कण्हा-जाव तेउलेम्सा) तेसो २0 ४-४० यावत् IMARया (हरिवास रम्मयत्रास अकम्भभूमय मणुस्साणं मणुस्सीण य पुच्छा) ४२वष, २भ्य. qष २५४म भूमिना मनुष्याना भने मनुष्यनिधी छ ? (गोयमा । चत्तारि, त जहाकण्हा जावं तेउलेस्सा) के गौतम ! २२-२म:- यावत् दोश्या (देवकुरु, उत्तरकुरु, अर्कम्मभूमय मणुम्सा एवं चेव) हेय९३ भने उत्त२४३ ५४मभूमिना मनुष्य मे०४ ४ारे (एएसिं चेव मणुस्सीणं एवं चेव) तमनी भनुप्यनियानी से प्रारे (धायइखंडपुरिमद्धे वि एवं चेव) पातडीन यूवधिमा २ (पच्छिमद्धे वि) पाश्चमाधमां पर म०४०
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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