SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५ प्रमेयबोधिनी टीका पद १७ सू० २ नैरयिकाणां समानाहारादिनिरूपणम् तरकाः, तत् एतेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते-नैररिकाः नो सर्वे समवर्णाः, एवं यथैव वर्णेन भणितास्तथैव लेश्यासु विशुद्ध लेश्यातरकाः, अविशुद्धलेश्यातरकाश्च भणितव्याः, नैरयिका खलु भदन्त ! सर्वे समवेदनाः ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, तत् केनार्थेन एव मुच्यते-नैरयिका नो सर्वे समवेदनाः ? गौतम ! नैरयिकाः द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-संज्ञियूताश्च असंज्ञिभूताच, तत्र खलु ये ते सज्ञिभूतारते खलु महावेदनतरकाः, तत्र खलु ये ते असंज्ञिभूतास्ते खल अल्पवेदनतरकाः, तत् तेनार्थेन गौतम! एवमुच्यते-नैरयिका: नो सर्वे समवेदनाः ॥९०२॥ ववनगा ते णं अविसुद्धवर्णतरागा) उनमें जो पश्चात् उत्पन्न हुए हैं वे अविशुद्ध वर्णवाले होते हैं (से एएणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ) इस हेतु से हे गौतम! ऐसा कहा जाता है (नेरइया नो सव्वे समवन्ना) सब नारक समान वर्णवाले नहीं हैं (एवं) इस प्रकार (जहेव बन्नेण भणिया) जैसे वर्ण से कहे (तहेव) उसी प्रकार (लेसालु विसुद्धले सतरागा) लेश्याओं में अधिक विशुद्ध लेश्यावाले (अविसुद्ध लेसतरागा य) और अविशुद्ध लेश्यावाले (भाणियव्या) कहने चाहिए (नेरइया णं भंते ! सचे समवेयणा ?) हे भगवन् ! सब नारक समान वेदनावाले हैं ? (गोयमा! नो इणढे लमहे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है (से केणटेणं एवं बुच्चह) किस हेतु से कहा जाता है (नेरइया णो सब्वे समवेयणा?) नारक सब समान वेदनावाले नहीं हैं ? (गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! नारक दो प्रकार के कहे हैं (नं जहा) वे इस प्रकार (सन्निभूया य असनिभूया य) संज्ञिभूत और असंजिभूत (तत्थ णं जे सन्निभूया ते णं महावेयणतरागा) उनमें जो संज्ञितूत हैं वे महावेदनावाले होते हैं (तत्थ णं जे ते असनिभूया ते णं अप्पवेयणतरागा) उनमें जो असंज्ञिभूत हैं, वे अल्प वेदनावाले हैं (से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चई) इस हेतु से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता ये तुथी ॐ गौतम । मे ४वाय छ (नेरइया नो सव्वे समवन्ना) या ना२४ समान वा नथी (एव) से प्रारे (जहेव बन्नेण भणिया) २५ वर्ष थी ४ा (तहेव) मेरी ४ारे (लेसासु विसुद्धलेसतरागा) वेश्यायामा मधि विशुद्ध वश्या (अविसुद्ध लेसतरागा य) मने मविशुद्ध वेश्यावाणा (भाणियबा) ४ . निरडया भंते सव्ये समवेयणा) भगवन ! या ना२४ समान वहन.वाणा छ ? (गोयमा | नो इणटे समदे) : गौतम | मा मथ समय नथी (से केणद्वेणं एवं वुच्चइ) ॥ तुथी वाय छ (नेरइया णो सव्वे समवेयणा) ना२४ मा समान वहनावाणा नथी ? (गोयमा । नेरइया दुविहा पण्णत्ता) गौतम । ना२४ मे. प्रा२ना छे (तं जहा) तेस। मा ४ारे (सन्निभूया य असन्निभूया य) सशीभूत म मसज्ञिभूत (तत्थणं जे सन्निभूया तेणं महा वेयणतरागा) त्यामा सज्ञिभूत छ, त। महावहनावाणा हाय छ (तत्थणं जे ते असन्निभूया तेणं अप्पवेरणतरागा) तमामा २ असजिभूत छ त। मह५वहनावाणा छ (से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ) मे उतुथी गौतम | मे ४ छ (नेरझ्या नो
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy